गोलू देवता (Golu Devta) जिन्हें न्याय का देवता भी कहा जाता है। जब मानवों की न्याय व्यवस्था से लड़ने के बाद भी किसी को न्याय ना मिले तो वे गोलू देवता की शरण में जाते हैं। गोलू देवता को परमोच्च न्यायलय भी कहते हैं। कहते हैं कि गोलू देवता यहां आने वाले भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण करते हैं। इसके साक्षी है इस मंदिर को लिखी गई बहुत सी चिठ्ठियाँ और मनोकामना पूर्ण होने पर इनके मंदिर में टंगी हजारों घंटियाँ।
गोलू देवता से सम्बंधित कहानी को और विस्तार से पढ़ेने से पहले ये बताना आवश्यक है कि उक्त जानकारियों का आधार क्या है। असल में गोरिल देवता जिन्हें गोलू देवता भी कहा जाता है उनका मूल नेपाल है। यही वजह है गोलू देवता के मंदिर अधिकतर कुमाऊँ क्षेत्र में ही देखने को मिलते हैं। इस पूरी पोस्ट का आधार अजय रावत जी की किताब है। जिसमें उनके द्वारा इस देवता का जिक्र है। इसी को आधार मानकर हम आपके लिए गोलू देवता से जुड़ा ये पोस्ट लेकर आए हैं जो एतिहासिक साक्ष्यों पर आधारित है जनश्रुतियों का इसमें समावेश कम किया गया है इसलिए ध्यान से पढ़िएगा।
गोलू देवता की पौराणिक कथा। Legend of Golu Devta
गोलू देवता (Golu Devta) लोक प्रसिद्ध लोकगायन के अनुसार चंद राजवंश के अंतर्गत राय राजवंश के राजकुमार थे। जिसके वंशज झालराय थे। झालराय का शासन 15वीं शताब्दी में था जिनका मूल नेपाल देश से है। इसी झालराय के पुत्र थे हालराय। हालराय ने झालराय की मृत्यु के बाद राजगद्दी संभाली।
हालराय को काफी समय तक संतान सुख की प्राप्ति नहीं हुई। जिसके कारण उन्होने ज्योतिषों से पुत्र प्राप्ति का संजोग जानना चाहा। ज्योतिषों ने हालराय को बताया कि उनकी आठवीं पत्नी से ही उन्हें पुत्र की प्राप्ति होगी। हालराय ने कई वर्षों तक पुत्र की कामना से सात विवाह भी किये। मगर जैसा ज्योतिषों ने बताया था उन्हें पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई।
एक दिन हालराय शिकार करने जंगल गए। जहाँ जंगल में काफी दूर निकल जाने के बाद उन्हें बहुत प्यास लगी। इसी प्यास को बुझाने के लिए वे एक झोपड़ी के पास गए और उनसे पानी मांगा । झोपड़ी से एक कुमारी कन्या कालिका ने उन्हें पानी पिलाया। मगर वे कालिका के सौंदर्य पर इतने मुग्ध हुए कि हालराय ने कालिका को विवाह प्रस्ताव दे डाला। जिसे कालिका ने भी स्वीकार किया।
उन्होंने कालिका से विवाह कर लिया और संजोग से कालिका ही उनकी आठवीं रानी निकली।
इसे भी पढ़ें – अल्मोड़ा में स्तिथ कसार देवी मंदिर जिसके रहस्य नासा के वैज्ञानिक तक जानना चाहते हैं।
इधर सातों रानियाँ कालिका के सौंदर्य से जलने लगी। वे कालिका से ईष्या करती और उसे प्रताड़ित करने के नए-नए तरीके ढूंढ़ती। एक दिन जब हालराय शिकार पर गए तो इन सातों रानियों ने षड्यंत्र रच डाला। उस समय रानी कालिका प्रसव पीड़ा में थी। उन सातों रानियों ने उनके पुत्र को बुरी नजर से बचाने के बहाने कलिका पर पट्टी बाँधी और जब कालिका के पुत्र का जन्म हुआ तो उन्होंने पुत्र को संदूक में बंद कर नदी में बहाया और इधर पुत्र के स्थान पर सिलबट्टा रख कर रानी कालिका और राजा हालराय से कहा कि रानी ने सिलबट्टे को जन्म दिया है। इससे हालराय बेहद निराश हुए और उन्होंने रानी को महल से निकाल लिया।
नदी में बहाया गया पुत्र मछली पकड़ने गए मछुआरे को मिला। मछुआरे ने जब बच्चे को पाया तो उन्होंने उस बच्चे के नदी में प्राप्त होने के कारण गोरिया कहा। यही गोरिया नाम आगे चलकर गोर्ला फिर गोल्ला के रुप में परिवर्तित हुआ। गोल्ला जब बालक था तो मुछुआरे दंपति ने उसका खूब लालन-पालन किया यहाँ तक कि बच्चे की घोड़े में रुची होने के कारण उसे काठ का घोड़ा भी दिया जिसे लेकर नन्हा गोरिया दिन भर खेलता था।
जब बच्चा बड़ा हुआ तो मछुआरे दंपति ने उनसे उनके प्राप्ति की सारी कथा सुनाई। जिसे सुनकर गोल्ला इस अन्याय के खिलाफ उठे। यही सोचकर उन्होंने काठ का घोड़ा लिया और उस नौले पर जा पहुंचे जहाँ रानियाँ अपने दासियों के साथ पहुंची हुई थी। गोल्ला ने काठ के घोड़े से पानी पीने को कहा। जिसपर वे सब हंसने लगी।
गोल्ला को ये करते देखकर रानियों ने कहा काठ का घोड़ा भला पानी कैसे पी सकता है। तो गोल्ला ने जवाब दिया जिस तरह एक स्त्री सिलबट्टे को जन्म देती है ठीक उसी प्रकार । ये बात धीरे-धीरे आग की तरह फैल गई यहाँ तक कि राजा को भी अपनी मूर्खता अंदेशा हुआ। रानियों ने सारे षड्यंत्र को हालराय के सामने उजागर किया तो राजा को सत्य को बोध हुआ। उन्होंने अपने पुत्र गोल्ला और पत्नी कालिका को सम्मान सहित अपने महल में ले गए और गोल्ला को राज पाठ दिया।
कहते हैं कि गोल्ला ने राजपाठ संभाल को न्याय को सर्वोपरि रखा वे अपने सफेद घोड़े पर बैठकर जहाँ जाते वहाँ न्याय पंचायत बिठाकर लोगों को उनका हक दिलाते। इसके अलावा वे गुरु गोरखनाथ के भी अन्नय अनुयायी थे। तभी जब कुमाऊँ की सेना का नेतृत्व करके गोरखा युद्ध में शहीद हुए तो उनको सम्मान देने के लिए चंदों ने उनके मंदिर की स्थापना अल्मोड़ा में करी। और उन्हें देवता स्वरुप मानकर लोग उनकी पूजा करने लगे।
इसके अलावा गोरखाओं में भी गोलू देवता को बहुत आदर सम्मान दिया गया। तभी अपनी क्रूर न्याय व्याय व्यवस्थाओं के अंदर उन्होंने घात का दीप गोरिल (गोलू देवता) को ही समर्पित किया। ताकि कोई उनसे झूठ ना कह पाए।
इसे भी पढ़ें – कत्यूरी वंश या कार्तिकेयपुर राजवंश का उत्तराखण्ड में शासन
उत्तराखण्ड में गोलू देवता के मंदिर | Golu Devta Temples in Uttarakhand
गोलू देवता के मंदिर मुख्यतः उत्तराखण्ड के कुमाऊँ क्षेत्र में ही देखने को मिलते हैं। जिनकी गोलू देवता से जुड़ी कहानी तो यही है मगर वहाँ स्थापना के अलग-अलग कारण है। मुख्य रुप से अल्मोड़ा में स्थित चितई के गोलू देवता को ऐतिहासिक रुप से पुराना कहा गया है। जहाँ चंद राजाओं द्वारा बनाया गया स्तंभ आज भी उसके पौराणिक महत्वता को दर्शाता है। इसके अलावा चंपावत, घोराखाल और ताड़ीखेत (अल्मोड़) में भी गोलू देवता के मंदिर स्थित हैं। जहाँ भक्त हर साल अपनी इच्छाओं की कामनापूर्ति के लिए आते रहते हैं।
इसे भी पढ़ें – उत्तराखंड में गोरखा शासन
(Golu Devta) यह पोस्ट अगर आप को अच्छी लगी हो तो इसे शेयर करें साथ ही हमारे इंस्टाग्राम, फेसबुक पेज व यूट्यूब चैनल को भी सब्सक्राइब करें।
[…] […]