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पिथौरागढ़ | Pithoragarh
देवभूमि उत्तराखंड राज्य में एक नगर है पिथौरागढ़। इस जिले के उत्तर में तिब्बत, पूर्व में नेपाल, दक्षिण एवं दक्षिण-पूर्व में अल्मोड़ा
पिथौरागढ़ का पुराना नाम “सोरघाट” था। “सोर” शब्द का अर्थ है “सरोवर” और कुछ लोगों का कहना है कि पहले इस घाटी में सात सरोवर थे जो कि सरोवर के पानी सूख जाने से इस स्थान में पठारी भूमि का जन्म हुआ। जिससे इस जगह का नाम “पिथोरा गढ़” पड़ा।
पिथौरागढ़ को “मिनी कश्मीर” भी कहा जाता है। उत्तराखंड राज्य के प्रसिद्ध हिलस्टेशन के रूप में पिथौरागढ़ का भी अपना एक मुख्य स्थान है। यहाँ दूर-दूर से पर्यटक रिवर राफ्टिंग, हैंड ग्लाइडिंग व स्केटिंग करने आते है। यहाँ शहर से आये पर्यटक अपनी शहरी ज़िन्दगी की भाग-दौड़ और गर्मी भरे माहौल को भूल जाते है। और प्रकृति की गोद में चैन के कुछ पल बिताकर सुकून की ज़िंदगी जी लेते है। यहाँ की हरी-भरी वादियों में प्रकृति से हर वह चीज मिल जाती है जो कश्मीर में मिल सकती है। पिथौरागढ़ के आस पास बहुत सी झीलें, हरी-भरी पहाड़ियाँ और ऊँचे-नीचे घुमावदार रास्ते है जो मन को एक नजर में ही भा जाते हैं। रंगबिरंगे फूल-पत्तियाँ, हरी-हरी नर्म, मुलायम घास की ऊँची-नीची पर नंगे पैर चलने से तन और मन दोनों को सुकून मिल जाता है। साथ ही पिथौरागढ़ में पर्यटकों के लिए बहुत सारे ऐतिहासिक, दर्शनीय और पौराणिक आकर्षण का समावेश है।
पिथौरागढ़ का इतिहास | History of Pithoragarh
कहा जाता है कि पिथौरागढ़ जिला नेपाल के राजा “पाल” के अधीन था। जो कि 13वीं सदी में पिथौरागढ़ पहुंचे और उसके बाद पिथौरागढ़ में शासन करना शुरू कर दिया और साथ ही दूसरी तरफ स्थानीय राजा *चंद* ने उनके खिलाफ विद्रोह किया। जिसके बाद *पाल* और *चंद* के बीच युद्ध आरम्भ हो गया। यह युद्ध तीन पीढियों तक चलता रहा जिसमे कभी-कभी *पाल* का शासन होता था और कभी-कभी “चंद” के राजा इस राज्य पर शासन करते थे। अंततः “चंद” वंश के राजा “पिथोरा चंद” ने नेपाली राजा “पाल” को हरा दिया और पिथौरागढ़ के राजा बन गए। इसलिए इस जगह का नाम पिथौरागढ़ के राजा के नाम पर रखा गया। लेकिन ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा भारत में आगमन के तुरंत बाद राजा “पिथोराचंद” का शासन समाप्त हो गया और अंग्रेजो ने आज़ादी तक पिथोरागढ़ में शासन किया।
पिथौरागढ़ के इतिहास में पृथ्वी राज चौहान का नाम भी आता है इतिहासकारों के अनुसार पृथ्वीराज चौहान ने जब अपने राज्य का विस्तार किया तो उन्होंने इस इलाके को अपने राज्य में मिला लिया और इस क्षेत्र को *राय पिथौरा* नाम दिया। राजपूतों का नियम रहा है कि वो जिस इलाके पर भी कब्जा करते थे उसका नाम खुद रखते थे। आगे चलकर चंद वंश और कत्यूरी राजाओं के काल में यह नाम “पृथीगढ़” हो गया। बाद में मुगलों के शासन काल में उनकी भाषा की दिक्कतों के चलते इसका नाम “पिथौरागढ़” पड़ गया। लेकिन यह केवल शहर की लोककथाओं का हिस्सा है।
कुछ पौराणिक कथाओं के अनुसार यह कहा जाता है कि पिथौरागढ़ का संबंध पांडवों से भी है क्योंकि पिथौरागढ़ में स्थित नकुलेश्वर मंदिर पांडु पुत्र नकुल को समर्पित है। कहते है पांडव इस इलाके में अपने 14 वर्ष के वनवास के दौरान आए थे।
पिथौरागढ़ से जुड़ी कुछ अन्य जानकारी | Some other information related to Pithoragarh
पिथौरागढ़ के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल :- डीडीहाट, जौलजीवी, मुनस्यारी, छोटा कैलाश, नारायण स्वामी आश्रम, पाताल भुवनेश्वर, गंगोलीहाट।
पिथौरागढ़ के पर्वत :- ओमपर्वत, पंचाचूली, नन्दकोट, ब्रह्मापर्वत, बामाधुर्रा, बुर्पूधुरा।
पिथौरागढ़ की गुफा :- पाताल भुवनेश्वर।
पिथौरागढ़ की हवाई अड्डा :- नैनी- सैनी।
पिथौरागढ़ की सीमा रेखायें :- पूर्व में नेपाल, पश्चिम में चमोली व बागेश्वर, उत्तर में चीन, दक्षिण में अल्मोड़ा व चम्पावत।
पिथौरागढ़ में राष्ट्रीय उद्यान :- अस्कोट वन्यजीव विहार।
पिथौरागढ़ की नदियाँ :- काली सरयू, गौरी गंगा, राम गंगा, धौली गंगा।
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पिथौरागढ़ में खानपान में क्या ? | Food & Drink of Pithoragarh
पिथौरागढ़ बहुत छोटा सा क्षेत्र है और यहाँ ज्यादा होटल नही है लेकिन फिर भी पिथौरागढ़ के प्रसिद्ध पकवानों में गेंहूँ और मंडुआ के आटे में दाल भरकर फिंगर मिल्ट बनाया जाता है। जिसे भांग की चटनी के साथ खाया जाता है। पर्यटकों को पिथौरागढ़ में बहुत अनौखे पहाड़ी व्यंजन चखने का मौका मिलते है।
कैसे पहुंचे पिथौरागढ़ | How to reach Pithoragarh
पिथौरागढ़ पहुँचने के लिए दो मार्ग है। एक मार्ग टनकपुर से और दूसरा काठगोदाम-हल्द्वानी से है। पिथौरागढ़ का हवाई अड्डा पन्तनगर अल्मोड़ा के मार्ग से 249 किलोमीटर का दूरी पर है और पास का रेलवे स्टेशन टनकपुर पिथौरागढ़ से 151 किलोमीटर की दूरी पर है। काठगोदाम का रेलवे स्टेशन पिथौरागढ़ से 212 किलोमीटर दूरी पर है।
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