Temple Culture Uttarakhand

पंच केदार, शिव के 5 प्रमुख धाम और इनकी यात्रा का महत्व | Panch Kedar

पंच केदार |  Panch Kedar

कैलाश वासी शिव, जो हिमालय और हिमालय से निकलने वाली अनगिनत जल धाराओं के स्वामी है वे उत्तराखंड राज्य के वर्षों से आराध्य रहे हैं उन्ही के कारण उत्तराखंड का अस्तित्व है और उन्हीं से उत्तराखंड की पहचान है। ऐसा इसलिए कह रहा हूँ क्यूंकि हिमालय का यह भू-भाग आदिकाल से ही केदारखंड के नाम से प्रसिद्ध था और आज  भी केदारेश्वर  के नाम से  ही इस भूमि को जाना जाता है। उत्तराखंड में लोग यहाँ की खूबसूरती को कम बल्कि शिव की तलाश में ज्यादा निकलते हैं। जिनमें शामिल है उत्तराखंड के कई सिद्ध पीठ व भगवान शिव के पांच अंगो से निर्मित पंच केदार (Panch Kedar)

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हिन्दू ग्रन्थ कहते हैं कि इन पंच केदार के एक बार कोई दर्शन कर ले तो उसके सारे कुल और पूर्वजों का तरण हो जाता है। फिर सवाल ये उठता है आखिर  कौन है पंच केदार और क्या है इन पंच केदारों के पीछे की कहानी ?



पंच केदार के पीछे की कहानी |  Story Of Panch Kedar

अक्सर आपने  पंच केदार (Panch Kedar) के बारे में समान्य ज्ञान की किताबों में पढ़ा होगा और आप उनके नाम भी जानते होंगे। लेकिन आपने कभी इन पंच केदार के इतिहास के बारे में जाना है। असल में पंच केदार की सारी कहानी पांडवों के स्वर्गा रोहण और उनके केदारखंड में शिव के दर्शनों से जुड़ी हुई है।  और इन पांच केदारों का उद्गमन भी उसी घटना का  परिणाम है।

पौराणिक कथा के अनुसार जब महाभारत युद्ध में पांडवों की विजय हुई तो उनपर वंश हत्या का पाप लगा तो भगवान कृष्ण ने उन्हें शिव के दर्शन करने को कहा। स्वर्गा रोहण के समय पांडव अलकनंदा के किनारे-किनारे गुजर कर जब इस क्षेत्र में पहुंचे तो उन्होंने अलग- अलग स्थानों पर शिव की स्तुति की।  मगर भगवान शिव ठहरे त्रिनेत्र धारी वे पांडवों  प्रयोजन जानते थे इसलिए उन्होंने महिष (भैंसे) का रूप धारण किया (केदारखंड के अनुसार) और यह रूप धारण करके वे जानवरों के झुण्ड में मिल गए।

जैसे -जैसे पांडव स्वर्गा रोहण के लिए चलते गए वे अलग-अलग स्थानों पर शिव का ध्यान करते गए मगर शिव उनके आस पास होके भी उनके पास नहीं आये। इस बात का पता पांडवो को तब लगा जब वे घूम कर गुप्तकाशी के नजदीक पहुंचे और उन्होंने जानवरों का झुण्ड में महिष को देखा।  ये समझकर बलशाली भीम ने दो शिलाओं के बीच टांगे फैला दी और बाकी पांडवों ने जानवरों को उस ओर भेजा। जानवरों का बाकी झुण्ड तो नीचे से निकल गया मगर भगवान शिव धरती में समाने लगे। ये देख कर भीम ने महिष की पीठ को पकड़ दिया और उन्हें जाने से रोका। पर शिव अंतर्ध्यान हो गए और उनके शरीर के पंच भाग नेपाल सहित उत्तराखंड के पांच भागों में प्रकट हुए। वीडियो देखें।

उत्तराखंड में स्तिथ इन पंच केदार के नाम

ऐसा कहा जाता है कि जब भगवान शिव महीष के रूप में अंतर्ध्यान हुए तो उनके धड़ का ऊपरी भाग काठमांडू में प्रकट हुआ, जहां पर पशुपतिनाथ का मंदिर है। वहीँ उनके हिस्से गढ़वाल के अन्य भागों में प्रकट हुये जिनमें शामिल है केदारनाथ, मद्महेश्वर, रुद्रनाथ, तुंगनाथ और कल्पेश्वर।  उत्तराखंड में स्तिथ यह पांच स्थल पंच केदार  (Panch Kedar) के नाम से जाने जाते है।

 


kedarnath mandir ka itihas केदारनाथ

केदारनाथ रुद्रप्रयाग जिले में स्तिथ है। यह शिव का प्रमुख धाम है और पंच केदार में सर्वप्रथम केदरेश्वर शिव के ही दर्शन किये जाते हैं। कहते हैं शिव जब धरती समाने लगे तो भीम ने उनके पीठ को पकड़ लिया। मगर शिव अंतर्ध्यान हो गए और उनके  पीठ की आकृति पिंड रूप में केदारनाथ  में प्रकट हुई। केदारनाथ में उसी शिलाखंड की पूजा अर्चना की जाती है। भीम द्वारा शिव के पीठ को पकड़ने से उनकी पीठ पर घाव बन गए थे यही  केदारनाथ में पूजा के समय शिला पर घी, चन्दन आदि समाग्रियों का लेप लगाया जाता है। आगे पढ़ें  ….

 

 


Madmaheswar Temple

मदमहेश्वर

मदमहेश्वर रुद्रप्रयाग जिले में रांसी उखीमठ में समुद्रतल से 3,497 मीटर ऊंचाई पर स्थित है। मदमहेश्वर में शिव के नाभि की पूजा अर्चना की जाती है। पंच केदारों मदमहेश्वर को द्वितीय स्थान पर पूजा जाता है। मद्महेश्वर का पौराणिक नाम मध्यमहेश्वर था। जो कालांतर में मदमहेश्वर के नाम से जाना जाने लगा।  आगे पढ़ें…

 

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tungnath templeतुंगनाथ

रुद्रप्रयाग के चोपता में स्तिथ तुंगनाथ में भगवान शिव के भुजाओं की पूजा की जाती है। यह मंदिर टोंगनाथ या टुनगनाथ पर्वत के शिखर पर है। इस मंदिर में शिव के अलावा पांच पांडवो के छोटे मंदिर भी स्तिथ हैं। कहा जाता है कि जहाँ तुंगनाथ मंदिर विद्यमान है वहाँ सर्वारोहणी को बढ़ते हुए पांडवों ने इस जगह पर भगवान शिव की अराधना की थी। आगे पढ़ें  …

 

 

 


 

Rudranath Templeरुद्रनाथ

समुद्रतल से इस मंदिर की ऊँचाई 2,290 मीटर है। रुद्रनाथ यात्रा गोपेश्वर के सगर गाँव से लगभग 4 किमी की चढ़ाई कर उत्तराखंड के सुंदर *पुंग बुग्यालों* से प्रारंभ होती है। पर्यटक एवं भक्तगण चढ़ाई पार करके पहुँचते है पित्रधार स्थान पर जहाँ भगवान शिव, पार्वती और भगवान विष्णु का मंदिर स्थित है। यहाँ शिव के मुख की पूजा अर्चना की जाती है।  आगे पढ़ें  …

 


kalpeshwar mahadev temple
kalpeshwar mahadev

कल्पेश्वर

कल्पेश्वर कल्पगंगा घाटी में स्थित है, कल्पगंगा को प्राचीन काल में नाम हिरण्यवती नाम से पुकारा जाता था। इसके दाहिने स्थान पर स्थित भूमि को दुर्बासा भूमि कही जाता है इस जगह पर ध्यान बद्री का मंदिर भी  है। कल्पेश्वर में शिव की जटा प्रकट हुई थी। पंच केदार में पांचवे स्थान पर कल्पेश्वर महादेव की पूजा की जाती है। आगे पढ़ें  …

 

 

 

 


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Deepak Bisht

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