यूं तो उत्तराखंड में शिव के कई धाम व मंदिर स्थित है। मगर उनमें से भी जो प्रमुख हैं वो भोलेनाथ के पंच केदार व पाँच एतिहासिहक सिद्ध पीठ । जिनके दर्शन मात्र से जीव मात्र का कल्याण निश्चित है। उत्तराखंड में पंच केदारों में भगवान केदारनाथ के बाद जिनका द्धितीय स्थान आता है वो मदमहेश्वर महादेव का है। इस पूरे पोस्ट में मदमहेश्वर मंदिर (Madmaheshwar Temple) के इतिहास, मान्यताओं व पर्यटन से संबंधित जानकारियों के बारे में आपको अवगत करायेंगे। अतः इस पोस्ट को अंत तक पढ़ें।
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मदमहेश्वर मंदिर | Madmaheshwar Temple
उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में ऊखीमठ के रांसी से 18 किमी की दूरी पर शिव का एक प्रमुख धाम स्थित है। जो मध्यमहेश्वर के नाम से जाना जाता है। स्थानिय भाषा में मदमहेश्वर के नाम से जाना जाने वाला यह मंदिर पूर्व में मध्यमाहेश्वर के नाम से प्रचलित था। शिव के बैल रुप के मध्य भाग यानि नाभि की इस स्थान में पूजा अर्चना की जाती है। जो कालांतर में मदमहेश्वर के नाम से जाना जाने लगा। हालांकि मद का अर्थ नशे से है।
समुद्रतल से 3,497 मीटर ऊंचाई पर स्थित मदमहेश्वर मंदिर कैलाशपति शिव को समर्पित है। हिंदू महाकाव्य के अनुसार इस मंदिर का निर्माण पांडवों ने अपनी स्वर्ग यात्रा के दौरान किया था। यह मंदिर चौखम्बा की हिमाच्छादित पर्वतमाला से घिरा है। इस मंदिर के कपाट एक निश्चित समयावधि के लिए खुले रहते हैं। शीतकाल में मदमहेश्वर की अराध्य डोली ऊखीमठ स्थित आोंकारेश्र्वर मंदिर में विराजती है और ग्रीष्मकाल में फिर मदमहेश्वर के मंदिर में डोली को लाया जाता है। उत्सव डोली के यात्रा के दौरान कई श्रद्धालु इस यात्रा में शामिल होते हैं। मदमहेश्वर से लगभग तीन किलोमीटर की दूरी पर बूढ़ा मदमहेश्वर मंदिर स्थित है। रांसी से गौंडार और गौंडार से मंदिर तक की पैदल यात्रा अत्यंत सुखद है। इस यात्रा के दौरान आप गौंडार स्थित ग्रामीणों के संघर्ष से भी परिचित होंगे।
मदमहेश्वर मंदिर का इतिहास व पौराणिक मान्यताएं | History & Legands about Madmaheswar Temple
पौराणिक कथाओं के अनुसार मदमहेश्वर मंदिर (Madmaheshwar Temple) का निर्माण पांडवों ने अपनी स्वर्ग यात्रा के दौरान किया था। महाभारत के युद्ध के बाद जब पांडवों पर वंश हत्या के पाप लगा तो भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों को उन्हें भोलेनाथ का ध्यान करने को कहा। स्वर्गारोहण के समय पांडव जब भोलेनाथ का ध्यान करने लगे तो त्रिनेत्र धारी शिव सब समझ गए और उन्होंने पांडवों से दूर रहने के लिए एक बैल का रुप रख लिया।
पांडव जब घूमते-घूमते केदारनाथ पहुंचे तो वे समझ गए भगवान शिव ने बैल रुप धरा है। उन्हें पकड़ने के लिए बलशाली भीम ने बैलों के झुंड के सामने खड़े होकर अपनी टांगे फैला दी। उनकी टांगों के नीचे से बाकी के बैल तो चले गए पर भगवान शिव नहीं। तब भीम ने उन्हें पकड़ा तो शिव गुप्तकाशी के समीप भूमि में समा कर अंतरध्यान हो गए। जब भगवान शिव भूमि में समाए तो उनके शरीर के पंच भाग इन पंच केदारों में प्रकट हुए। जहाँ केदारनाथ में शिव के कूबड़ (पीठ), तुंगनाथ में भुजा, रुद्रनाथ में सिर, मदमहेश्वर में नाभि व कल्पेश्वर में जटा। तबसे इन स्थानों में भगवान शिव की पूजा अर्चना की जाती है। और ये पाँचों स्थान पंच केदार के नाम से प्रसिद्ध हो गए।
आदिकाल में शंकराचार्य ने ही इन मंदिरों की स्थापना कि यही कारण इन मंदिरों में दक्षिण भारत के रावल ही इन स्थानों पर कपाट खोलने व पूजा अर्चना का कार्य करते हैं।
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मदमहेश्वर मंदिर से जुड़ी मान्यता
इस मंदिर के विषय के बारे में मान्यता है कि जो व्यक्ति मदमहेश्वर में भक्ति या बिना भक्ति के ही महात्म्य को पढ़ता या सुनता है तो उसे शिव के परम धाम में स्थान प्राप्त होता है। इसके अलावा जो व्यक्ति यहाँ पिंठ दान करता है तो उसके पिता की सौ पीढ़ी पहले के व सौ बाद के, सौ पीढ़ी माता के तथा सौ पीढ़ी श्र्वसुर के वंशजों का उद्धार हो जाता है।
एक अन्य मान्यता के अनुसार पौराणिक काल में इस स्थान के अपूर्व छटा व खूबसूरती के कारण भगवान शिव व माता पार्वती ने मधुचंद्र रात्रि यहीं मनाई थी। यह मौजूद जल के बारे में कहा जाता है कि इस जल की कुछ बूंदे ही मोक्ष के लिए पर्याप्त हैं।
क्या है मदमहेश्वर में खास | Sightseeing in Madmaheswar
चौखंभा शिखर की तलहटी में स्थित मदमहेश्वर धाम प्रकृति की नैसर्गिक खूबसूरती को समेटे हुए है। दूर-दूर तक फैले चौखंभा, नीलकंठ व केदारनाथ की हिमाच्छादित पर्वत श्रृंखलाओं के नजारे इस स्थान से देखे जा सकते हैं। वहीं मदमहेश्वर यात्रा मार्ग में स्थित खूबसूरत झरने, फूलों – हरे बुग्यालों से सजी घाटियाँ व बादलों के जमघट और स्वच्छ नीला आसमाँ यहाँ आने वाले आगंतुकों का मन मोह लेती हैं।
मदमहेश्वर से कुछ किलोमीटर दूर बूढ़ा मदमहेश्वर या वृद्ध मदमहेश्वर स्थित है। जहाँ प्रकृति प्रेमियों को सुंदर नजारे देखने को मिलते हैं। इस जमीन में फैले पर्वत मौसम के साथ-साथ रंग बदलते हैं और प्रकृति का मनमोहक दृश्य पेश करते हैं।
कैसे आए मदमहेश्वर मंदिर ? | How to Reach Madmaheshwar Temple?
- दिल्ली – देहरादून जोलीग्रांट (हवाई मार्ग )
- दिल्ली – देहरादून / ऋषिकेश हरिद्वार (रेल मार्ग )
- देहरादून/ ऋषिकेश/ हरिद्वार – रुद्रप्रयाग (सड़क मार्ग)
मदमहेश्वर मंदिर (Madmaheshwar Temple) रुद्रप्रयाग के ऊखीमठ से मनसूना होते हुए रांसी से अठारह किलोमीटर पैदल मार्ग पर स्थित है। पहले यात्रियों को उनियान से ही पैदल यात्र शुरु करनी पड़ती थी । मगर रांसी तक सड़क मार्ग से जुड़ने के कारण इसकी दूरी कम हो गयी है। रांसी मदमहेश्वर मंदिर का यात्रा पड़ाव है। यहाँ से पैदल मार्ग द्धारा गौंडार और गौंडार से मदमहेश्वर की दूरी तय की जाती है। पहाड़ की तलहटी पर बसा गौंडार गांव भी पहुंचकर आप इन दूरस्थ इलाकों में रह रहे ग्रामिणों का संघर्ष भी आप महसूस करेंगे।
मदमहेश्वर मंदिर (Madmaheshwar Temple) के लिए आप हवाई मार्ग से देहरादून व रेल मार्ग से ऋषिकेश/हरिद्धार/देहरादून पहुंच सकते हैं। जहाँ से आपको रुद्रप्रयाग, ऊखीमठ, मनसूना होते हुए यह दूरी सड़क मार्ग से तय करनी होगी।
कब आए मदमहेश्वर मंदिर ? | Best time to visit Madmaheswar
मदमहेश्वर मंदिर (Madmaheshwar Temple) के कपाट ग्रीष्मकाल में अप्रैल माह में खुलते हैं तथा शीतकाल नवंबर में भगवान केदारनाथ के कपाट बंद होने पर यहाँ भी कपाट बंद हो जाते हैं। तथा मदमहेश्वर की डोली ऊखीमठ स्थित ओंकारेश्वर मंदिर में शीतकाल में लायी जाती है।
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तो ये थी उत्तराखंड में भगवान शिव के मदमहेश्वर मंदिर (Madmaheshwar Temple) के बारे में यदि आपको मदमहेश्वर मंदिर (Madmaheshwar Temple) से जुडी जानकारी अच्छी लगी हो तो इसे शेयर करें साथ ही हमारे यूट्यूब चैनल को भी सब्सक्राइब करें।
Bht sunder Bhai lge raho