उत्तराखंड में कई देवी देवताओं के निवास स्थल हैं। फिर वो पंच केदार हों, पंच बद्री हों या राजराजेश्वरी के कई सिद्ध पीठ। यही कारण है उत्तराखंड की संस्कृति में धर्म-कर्म की छाप साफ़ दिखाई देती है। उत्तराखंड में पांडवों द्वारा निर्मित कई मंदिर है, पुराणों के अनुसार कई मंदिरो का निर्माण भगवान के अंगो से हुआ है पर क्या आपने एक ऐसे मंदिर के बारे में सुना जहां शिव और पार्वती के विवाह के साक्षी स्वयं विष्णु बने थे। ये मंदिर है विष्णु का त्रियुगी नारायण मंदिर (Triyugi Narayan Temple)।
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त्रियुगी नारायण मंदिर | Triyugi Narayan Temple
उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में सोनप्रयाग से 12 किलोमीटर की दूरी और समुद्रतल से 1,980 मीटर की ऊंचाई पर त्रियुगी नारायण मंदिर स्तिथ है। सोनगंगा व मंदाकनी नदियों के किनारे स्तिथ यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। चारों ओर से हिमालय की सुरम्य पहाड़ियों और हरे भरे खेत खलियानो के बीच स्तिथ यह मंदिर देखने में बेहद ही खूबसूरत लगता है। कहते हैं कि इस मंदिर का निर्माण आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा किया गया था।
त्रियुगी नारायण मंदिर (Triyugi Narayan Temple) को स्थानीय भाषा में त्रिजुगी नारायण (Trijugi Narayan) के नाम से जानते हैं। वहीं इस मंदिर में वर्षों से जल रहे अग्नि कुंड के कारण त्रियुगी नारायण को अखंड धुनी मंदिर (Akhand Dhuni Temple) के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर के प्रांगण में चार कुंड – सरस्वती कुंड, रूद्र कुंड, विष्णु कुंड व ब्रह्म कुंड स्तिथ हैं। जिसमें मुख्य कुंड (सरस्वती कुंड) पास में मौजूद तीन जल कुंडों को भरता है।
देखने में त्रियुगी नारायण की बनावट केदारनाथ मंदिर संरचना जैसे लगती है। इस मंदिर के बाहर एक यज्ञ कुंड है जो दीर्घकाल से प्रज्वलित किया जा रहा है। मंदिर के भीतर भगवान विष्णु की प्रतिमा के साथ-साथ माता लक्ष्मी व सरस्वती की प्रतिमा भी सुशोभित हैं।
क्या है त्रियुगी नारायण मंदिर की कहानी ? | Story Behind Triyugi Narayan Temple
पौराणिक कथा के अनुसार जब माता सती ने अपने पिता प्रजापति दक्ष के यज्ञ में भगवान शिव का अपमान हुआ तो उन्होंने क्रोधित होकर यज्ञ कुंड में अपने शरीर की आहुति दे दी। इस घटना से भगवान शिव बड़े क्रोधित हो गए और उन्होंने दक्ष का मस्तक काटकर तांडव करने लगे। जब सबके आग्रह पर भी उनका क्रोध शांत नहीं हुआ तो देवताओं ने भगवान विष्णु से उन्हें शांत करने को कहा। भगवान विष्णु के कहने पर भगवान शिव का क्रोध शांत हुआ और उन्होंने दक्ष को जीवन दान देकर उसके धड़ पर बकरे का सर लगा दिया। तबसे हरिद्वार के कनखल में दक्षेश्वर महादेव के रूप में शिव की पूजा होती है।
इस घटना के बाद भगवान शिव समाधि में चले गए और उसी बीच ब्रह्मा के वरदान से ताड़कासुर ने तीनों लोकों पर विजय प्राप्त की और ताड़कासुर ने यम पर चढ़ाई करके उन्हें भी पराजित किया। हारने के बाद यम पौड़ी में स्तिथ क्यूंकालेश्वर मंदिर में शिव के ध्यान में बैठ गए।
ताड़कासुर को वरदान था कि उनकी मृत्यु शिव पुत्र के हाथों होगी। इसलिए ये सारे घटना कर्म उसी का परिणाम था। उधर महादेव समाधि में थे तो दूसरी तरफ हिमवंत क्षेत्र में राजा हिमावत के यहाँ माता शक्ति ने पार्वती के रूप में जन्म लिया।
कहते हैं कि माता पार्वती शिव के रूप से अति मोहित थी और उन्होंने शिव को पाने का बहुत प्रयास किया पर वो असफल रही। उधर यम की देह कंकाल में प्रवर्तित हो गयी तो भगवान शिव ने अपनी समाधि छोड़कर उन्हें दर्शन दिए व ताड़कासुर के मृत्यु के लिए उन्हें आश्वस्त किया। और तबसे पौड़ी में स्तिथ यह स्थान क्यूंकालेश्वर के नाम से प्रसिद्ध हो गया।
माता पार्वती के रूप से जब शिव मोहित नहीं हुए तो माता पार्वती गौरीकुंड में शिव की तपस्या में बैठ गयी। पार्वती की कठोर तपस्या से शिव बड़े प्रसन्न हुए और उन्होंने उन्हें दर्शन दिए। स्थानीय किवदंतियों के अनुसार माता पार्वती ने शिव से विवाह का प्रस्ताव दिया और दोनों ने गुप्तकाशी के नजदीक त्रियुगी नारायण में विवाह कर लिया।
कहते हैं कि इस विवाह को औपचारिक रूप देने के लिए भगवान विष्णु ने माता पार्वती के भाई का कार्य किया वहीँ ब्रह्मा ने पुजारी बन कर इस विवाह की सारी धार्मिक क्रियाओं को पूरा कराया। विष्णु की नाभि से इस मंदिर में सरस्वती जल धरा का निर्माण हुआ और इस जल से बने रूद्र कुंड, ब्रह्म कुंड व विष्णु कुंड में देवताओं ने स्नान किया। हिमवंत प्रदेश का यह पूरा क्षेत्र माता पार्वती व शिव के विवाह का साक्षी बना था। तबसे यह स्थान त्रियुगी नारायण के नाम से प्रसिद्ध हो गया।
उनके विवाह के बाद कार्तिकेय का जन्म हुआ जिसने ताड़कासुर का वध कर तीनो लोकों को आजाद कराया। कहते हैं मरते समय ताड़कासुर ने भगवान शिव से क्षमा मांगी और भगवान शिव तबसे ताड़केश्वर के नाम से भी जाना जाने लगे।
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त्रियुगी नारायण से जुडी मान्यता
इस मंदिर से जुडी मान्यता है कि मंदिर के आँगन में स्तिथ अग्नि कुंड जहां शिव और पार्वती परिणय सूत्र में बंधे थे उस अग्नि कुंड की ज्वाला वर्षों से जलाई जा रही है। कहते हैं की जो व्यक्ति इस कुंड में लकड़ी को प्रज्वलित करता है और इसकी राख को अपने पास रखता है तो उनके वैवाहिक जीवन में हमेशा सुख समृद्धि बनी रहती है। वहीँ प्रागण में स्तिथ कुंड के जल से जो एक बार स्नान करता है तो बाँझपन जैसी समस्या से उसे निदान मिल जाता है।
डेस्टिनेशन वेडिंग पॉइंट बना त्रियुगी नारायण मंदिर | Destination Wedding In Triyuginarayan Temple
वर्ष 2018 में उत्तराखंड सरकार द्वारा त्रियुगी नारायण को डेस्टिनेशन वेडिंग (Destination wedding) के लिए प्रचार प्रसार किया गया। इसके पीछे सरकार तर्क था कि जिस स्थान पर स्वयं भगवान शिव और पार्वती ने विवाह किया हो वहां दूर-दूर से लोग विवाह करने आएंगे। इससे ना सिर्फ उत्तराखंड में पर्यटन बढ़ेगा बल्कि इस क्षेत्र विकास भी होगा।
उत्तराखंड सरकार द्वारा त्रियुगीनारायण मंदिर की डेस्टिनेशन वेडिंग के रूप में घोषणा के बाद यहाँ बड़े बिजनेस मेन, राजनेता, और टीवी कलाकार विवाह के बंधनो में बंध चुके हैं। इसमें शामिल है एफआईआर सीरियल की प्रसिद्ध टीवी एक्टर कविता कौशिक, प्रदेश के मंत्री धन सिंह रावत, गाजियाबाद की आईपीएस, अपर्णा गौतम और नैनीताल के एडीएम ललित मोहन। हालाँकि मुकेश अम्बानी के बेटे की शादी अगर इस स्थान पर होती तो यह इस क्षेत्र के पर्यटन में मील का पत्थर हो सकता था।
कैसे पहुंचे त्रियुगी नारायण मंदिर | How To Reach Triyugi Narayan Temple
- सोनप्रयाग से सड़क मार्ग द्वारा आसानी से त्रियुगी नारायण मंदिर पहुंचा जा सकता है।
- रुद्रप्रयाग में स्तिथ सोनप्रयाग तक की यात्रा आपको सड़क मार्ग द्वारा करनी होगी।
- सोनप्रयाग पहुंचने के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन देहरादून (251 किलोमीटर) या ऋषिकेश रेलवे स्टेशन (212 किलोमीटर) है।
- सोनप्रयाग के लिए निकटतम हवाई अड्डा जॉली ग्रांट हवाई अड्डा, देहरादून (226 किलोमीटर) है।
- आप त्रियुगी नारायण मंदिर के लिए कैब / टैक्सी किराए पर भी ले सकते हैं ।
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दोस्तों ये थी उत्तराखंड में भगवान शिव के विवाह स्थल त्रियुगी नारायण मंदिर (Triyugi Narayan Temple) के बारे में यदि आपको त्रियुगी नारायण मंदिर (Triyugi Narayan Temple) से जुडी जानकारी अच्छी लगी हो तो इसे शेयर करें साथ ही हमारे यूट्यूब चैनल को भी सब्सक्राइब करें।
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