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यकुलाँस – पहाड़ के भूतहा गांवों से टकराकर लौटी आवाज सा है..

कला को देखते तो सब हैं मगर उसे देखने, समझने का नजरिया विकसित करने से लेकर और हमारे जीवन के तमाम हलचलों की छाया का प्रतिबिंब उसमें दिखाना एक अद्भुत कलाकार की अविस्मरणीय कलाकृति ही कर सकती है। जिसने उसे देखा वह वैसा बन गया जैसे यकुलाँस। इस संदर्भ में मुझे पिकासो की कही बात याद आती है।

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“Art is a lie that makes us realize the truth.” – Pablo Picasso

पांडवाज क्रिएशन द्वारा निर्मित शार्ट फिल्म यकुलाँस एक बेहतरीन आर्ट की वही झूठी तस्वीर है जो हमें हकीकत से रूबरू कराती है। यकुलाँस में वह सब कुछ था जिसे अक्सर हमने देखा, पाया, सुना, दोहराया और फिर भूलते चले गए। यकुलाँस उन्हीं भूली बातों व यादों का एक रिमाइंडर है। कई लोगों को लगा यह तो पहाड़ के भूतहा हो रहे गावों की दर्द भरी कहानी है। कई लोगों ने इसे पहाड़ की चुनौतियों और संघर्ष से देखा। इन सब के बीच यकुलाँस फिर चर्चा का कारण बन गया। सवाल की आखिर पहाड़ों के खाली होने का जिम्मेदार कौन है?

यही एक खूबसूरत आर्ट करता है आपको हकीकत से रूबरू कराता है और उन हकीकतों को जानने के बाद कोई ऊँगली हमारी और न उठे; हम दूसरों को उसका जिम्मेदार ठहराने लगते हैं। हर कोई जो विदेश या प्रदेश से दूर चला गया लोग उसे जिम्मेदार ठहराने लगते हैं। मगरकहते हैं कि हम जब किसी पर ऊँगली उठाते हैं तो एक ऊँगली उसकी तरफ रहती है बाकि चार हमें जिम्मेदार ठहराने लगती हैं।  जैसे वे लोग जो अपने गांव से महज कुछ किलोमीटर की दूरी पर थे और कभी गांव लौटे नहीं। आप और हम जैसे लोग जिन्हें लगता है दूसरा सब भूल गया। खैर यह मैं दिन भर कर सकता हूँ न थकते हुए किसी को जिम्मेदार ठहराना, पलायन को आधुनिकता और बाहरी संस्कृति के बहकावे का कारण बताना ये सोचे बिना कि वे दिन कुछ और थे जिनका इतिहास बंद किताबों तले धूल फाँक रहा है।




मेरी मानो तो पांडवाज क्रिएशन का यकुलाँस मुझे एक सुन्दर, सुखद कविता सा लगा। थोड़ा खुशी से भावुक भी हुआ। इसलिए नहीं कि मुझे पलायन का दर्द दिखा बल्कि कहीं न कहीं अपने दादा-दादी, नाना-नानी की झलक मुझे यकुलाँस के उस किरदार में दिखी जो आधुनिकता के साथ तो चलता दिख रहा है मगर अपना प्यार, स्नेह घर की उगाई उन सेबों और अनाजों में छुपा के रखा है। जिसका अंदाजा हमें झोला खोलते हुए ,उन अनाजों और फलों में देख कर महूसस होने लगता है। मुझे इस बात का दुःख हुआ और शायद किरदार को भी इसी बात का दुःख हुआ होगा कि उसकी स्नेह के उपहार कोई चुरा ले गया। पैसा ले जाता तो इतना अफ़सोस शायद न मुझे होता न यकुलाँस के किरदार को।

इस सुन्दर शार्ट स्टोरी इसलिए भी  मुझे सुखद लगी क्योंकी जीवन के संघर्ष और चुनौतियां पहाड़ और मैदान दोनों में हैं।  शायद पहाड़ों में ज्यादा हो। मगर एक कहानी का सुखद अंत इससे अच्छा क्या हो सकता है जब आदमी वापस घर लौट जाता है। देखा जाए तो यकुलाँस हम सब में है मन का वह कोना जो उमीदों, संवेदनाओं और अनगिनत इच्छाओं से भरा है जिसे कोई नहीं जानता। हाँ बैकग्राउंड में ईशान डोभाल की मेलोडी बजने लग जाये तो अंदर कुछ पिघलने जरूर लगता है।

अब बात मुद्दे कि करते हैं यानि किरदार, म्यूजिक और क्रिएटिविटी की। पांडवज की यकुलाँस में मुझे हर वो बात नजर आयी जो इसे एक सुंदर आर्टिस्ट की बेजोड़ कलाकृति  बनाती है। क्रिएटिविटी, म्यूजिक और बेहतरीन कैमरा शॉर्ट, लगभग 20 मिनिट  से ज्यादा के मूक दृश्यों को सजीव कर देता है। स्टोरी लाइन तो इसे और भी जबरदस्त बना देता है जिस कारण उन मूक दृश्यों में किरदार की सारी भावनाओं से जोड़े रखता है। इस सब को देखने के बाद विद्यादत्त शर्मा की कहानी पर आधारित मोती बाग़ जो ऑस्कर नॉमिनेटेड रह चुकी है, उस शार्ट स्टोरी से ज्यादा सजीव मुझे यकुलाँस के मूक दृश्य दिखाई पड़ते हैं। मुझे उम्मीद है कि नेशनल फिल्म फेस्टिवल में अगर यह शार्ट फिल्म पांडवाज द्वारा भेजी गयी तो कोई न कोई इनाम जरूर पांडवाज की झोली में आएगा।




कहते भी हैं कि कुछ अच्छा पक कर आने में समय लगता है कुणाल डोभाल की तीन वर्षों की झलक इसमें साफ़ दिखाई भी देती है। वहीं इस म्यूजिक विडिओ में दिखायी गयी दीपा बुग्याली, जिनके बारे में उन्होंने बताया कि इन्हें ढूढ़ने में काफी वक्त लगा यह उनकी कार्यात्मक शैली को चित्रार्थ भी करता है। जगदम्बा चमोला की कविता पर जो म्यूजिक दिया। ऐसा लगा मानो चमोला जी कवि से रैपर बन गए हैं। ईशान डोभाल का म्यूजिक तो हर बार  कानों में काफी देर तक गूंजता रहता है। वो कहते हैं न संगीतकार की सबसे बड़ी सफलता यही है जब कोई श्रोता उनका गाना  लूप में सुनें। टाइम मशीन के हर संगीत ने कुछ यही कर दिखाया है।

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Deepak Bisht

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