
उत्तराखंड के लोक नृत्य
उत्तराखंड के लोक नृत्य (Folk Dances of Uttarakhand): उत्तराखंड कला, संस्कृति और लोक विधाओं से सम्पन्न प्रदेश है। यहां की लोक विधाओं और परम्पराओं ने उत्तराखंड की बरसों से चली आ रही जानकारियों को सहेजना का काम किया है। उन्ही लोकविधाओं में आता है उत्तराखंड के लोक नृत्य। उत्तराखंड के लोक नृत्य न सिर्फ उत्तराखंड वासियों के समाजिक सौहार्द को उजागर करता है बल्कि इसमें प्रकृति प्रेम की भी साफ़ झलक दिखाई देती है। इस पोस्ट के माध्यम से हम उत्तराखंड के लोक नृत्यों के बारे में बात करेंगे।
उत्तराखंड के लोक नृत्य (Folk Dances of Uttarakhand)
उत्तराखंड राज्य भौगोलिक सुंदरता के साथ विविध सांस्कृतिक विविधताएँ भी समेटे हुआ है। यहां के स्थानीय लोगों ने अपनी लोक संस्कृति को इतनी शालीनता से सहेजा है कि इस पहाड़ी प्रदेश की नैसर्गिक खूबसूरती के अलावा पर्यटक यहां के साधारण जीवन रोचकता दिखने लगते हैं। यहां के लोकगीत, लोक गायन शैली, चित्र अथवा शिल्प और लोकनृत्य इतना समृद्ध और विस्तृत है कि इसके बारे में जितना शोध किया जाए कम है।
लोकसंस्कृति ही किसी प्रदेश की मूल अवधारणाओं को दर्शाता है। यही उस समाज के आँखें और कान दोनों होते हैं। और उसी लोकसंस्कृति के प्रमुख आधार हैं लोकगायन और लोकनृत्य। उत्तराखंड के लोकगायन के बारे में हम पहले ही बात कर चुके हैं जिसे आप हमारे पुराने पोस्ट में पढ़ सकते हैं, यहां हम उत्तराखंड के लोक नृत्यों के बारे में बात करेंगे।
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उत्तराखंड के प्रमुख लोकनृत्य (Major folk dances of Uttarakhand)
लोकनृत्य एक क्षेत्र विशेष के साथ यहां की परंपराओं और रीति-रिवाजों को भी दर्शाते हैं जिसमें से कुछ इस प्रकार हैं।
1. थड़िया नृत्य (Thadiya Dance):
उत्तराखंड के लोक नृत्य (Folk Dances of Uttarakhand in Hindi) में सबसे पहले थड़िया नृत्य की बात करते हैं। यह नृत्य विवाहित लड़कियों के द्वारा विवाह के पश्चात पहली बार मायके आने पर किया जाता है। यह एक निश्चित समय बसंत पंचमी से विषुवत संक्रांति (विखोत) तक किया जाने वाला नृत्य हैं । थड़िया शब्द की उत्पत्ति थाड़ से हुई है, जिसका अर्थ है आंगन या चौक। यानि चौक में किया जाने वाला नृत्य। यह नृत्य प्रेम, लगाव व सहयोग का प्रतीक माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि वसंत ऋतु में रातें लंबी होती हैं इसीलिए गांव के लोग मिल जुलकर मनोरंजन के लिए थड़िया नृत्य का आयोजन करते हैं।
2. सरौं- नृत्य (Saroun- Dance)
यह नृत्य गढ़वाल क्षेत्र में किया जाने वाला युद्ध गीत नृत्य हैं। जिसको ढोल की ध्वनि के साथ किया जाता है। इस नृत्य में प्रथम चरण में ढोल और ढोली जोड़े में करतब दिखाते हैं। दूसरे चरण में ढोल की ताल पर नृतक तलवार और ढाल के साथ स्वांग कर करतब दिखाते हैं। यह नृत्य मुख्य रूप से टिहरी, उत्तरकाशी में प्रचलित है। सरौं नृत्य को भोटिया जनजाति में पौंणा नृत्य भी कहा जाता है। कुमाऊं क्षेत्र में इसे छोलिया नृत्य कहा जाता है और शादी विवाह समारोह में विशेष रुप से किया जाता है। यह नृत्य युद्ध कौशल का प्रतीक भी माना जाता है। ऐसी मान्यता भी है कि पहले ठकुरी राजा विवाह के लिए दूसरे ठकुरी राजा की पुत्री का अपहरण करते थे। उसी अपहरण के दौरान हुए युद्ध पर यह सरौं नृत्य आधारित है
3. चौंफला नृत्य (Chaunphala Dance)
यह समूह में टोली बनाकर किया जाने वाला श्रृंगार भाव प्रधान नृत्य है। ऐसी मान्यता है कि यह नृत्य, माता पार्वती ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए किया था। इसमें किसी वाद्ययंत्र का प्रयोग न होकर हाथों की ताली, पैरों थाप ,झांझ की झंकार, कंगन व पाजेब की सुमधुर ध्वनिया ही मादकता प्रदान करती हैं। इसमें पुरुष नर्तक को चौंफुला तथा स्त्री नृतकी को चौफुलों कहते हैं। चौंफला नृत्य ‘बिहू व गरबा श्रेणी का नृत्य है।
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4. मंडाण नृत्य (Mandan Dance)
यह नृत्य देवी देवता पूजन व शादी विवाह में किया जाने वाला नृत्य है। इस नृत्य में एकाग्रता अनिवार्य है और ज्यादातर गीत महाभारत के विभिन्न घटनाक्रमों से संबंधित होते हैं। इसके अलावा लोक कथाओं से जुड़े गीत भी गाए जाते हैं। उत्तराखंड के इस लोकनृत्य केदार नृत्य भी कहते हैं ।
5. हारूल नृत्य (Harul Dance)
यह नृत्य जौनसारी जनजाति द्वारा किया जाने वाला नृत्य है जिसकी विषय वस्तु पांडव जीवन पर आधारित है। नृत्य के समय रमतूला नामक वाद्य यंत्र अनिवार्य रूप से बजाया जाता है।
6. बुड़ियात नृत्य (Budhiyat Dance)
यह नृत्य जौनसारी समाज में जन्मोत्सव, शादी विवाह व हर्षोल्लास के समय किया जाने वाला पारंपरिक नृत्य है ।
7. झुमैलो नृत्य (Jhumailo Dance)
यह नृत्य नवविवाहित कन्याओं द्वारा किया जाता है इसकी भावना प्रकृति व मायके से जुड़ी है यह नृत्य नारी की वेदना और उसके प्रेम को अभिव्यक्त करता है ऐसे में नारी अपनी पीड़ा को भूलकर सकारात्मक सोच के साथ लोकगीतों और संगीत में ताल के साथ नृत्य करती है यह तालबद्ध लोक नृत्य श्रृंगार और वियोग का अद्भुत संगम है।
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8. चाँचरी नृत्य (Chanchari Dance)
यह नृत्य माघ के महीने में चांदनी रात में किया जाने वाला नृत्य है। इसमें मुख्य गायक वृत्त के बीच में हुड़की बजाते हुए नृत्य करता है। कुमाऊं क्षेत्र में इसे झोड़ा नृत्य के नाम से जाना जाता हैं । यह एक शृंगारिक नृत्य है ।
9. रणभूत नृत्य (Ranbhoot Dance)
यह नृत्य वीरगति को प्राप्त करने वालों के सम्मान में उनकी आत्मा की शांति के लिए उनके परिवार वालों के द्वारा किया जाने वाला नृत्य है। इस नृत्य को देवता घिराना भी कहते हैं । गढ़वाल व कुमाऊं का पवाड़ा या भाड़ौ नृत्य भी इसी विषय पर आधारित है। जिसमें वीरगति को प्राप्त होने वालों को देवताओं के समान आदर दिया जाता है।
10. लोटा नृत्य (Lota Dance)
इसमें सिर पर लोटो की श्रंखला रखकर उसमें आग जलाकर नृत्य किया जाता है ।
11.झोड़ा नृत्य (Jhoda Dance)
यह नृत्य शादी ब्याह कौथिक (मेले) में किया जाने वाला सामूहिक नृत्य है। यह नृत्य दो प्रकार का होता है। एक मकतक झोड़ा और प्रबंधनात्मक झोड़ा । इस नृत्य में देवी देवताओं और ऐतिहासिक वीरभड़ों का चरित्र गान होता है। इसका मुख्य केंद्र बागेश्वर है।
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12.बगवाल नृत्य (Bagwal Dance)
इस नृत्य में दो पक्षों में विभक्त लोग एक दूसरे पर पत्थर फेंकते हैं। उसको बगवान नृत्य भी कहते हैं।
13. छोलिया नृत्य (Chholia Dance)
यह नृत्य शादी समारोह व धार्मिक आयोजनों में किया जाता है। यह नृत्य ढाल तलवार के साथ किया जाता है। यह नृत्य नागराजा, नरसिंह, व पांडव लीलाओं पर आधारित है। इसमें सामान्यतः 22 कलाकार होते हैं। जिसमें 14 संगीतकार व 8 नर्तक होते हैं। यह नृत्य, नाट्य युद्ध जैसा प्रतीत होता है व नृत्य के समय कलाकार अपने साथ त्रिकोणीय झंडा (निसाण) भी रखते हैं और मुख भाव उग्र होता है ।
15. घुघूती नृत्य (Ghughuti Dance)
उत्तराखंड के लोक नृत्य में प्रकृति से प्रेम की झलक साफ़ दिखाई देती है और उसी प्रेम और प्रकृति और मनुष्य के बीच का अटूट सम्बन्ध दर्शाता है घुघूती नृत्य। गढ़वाल क्षेत्र में यह नृत्य छोटे बाल बालिकाओं द्वारा मनोरंजन के लिए किया जाता है।
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17. भैला नृत्य (Bhaila Dance)
यह नृत्य एकादशी दीपावली (इगास) के दिन भैला बांधकर किया जाता हैं।
18 : सिपैंया नृत्य (Sipaiya Dance)
यह नृत्य देश प्रेम की भावना से ओतप्रोत है। यह सेना में जाने के लिए युवाओं के उत्साहवर्धन के लिए किया जाता है।
आभार – उत्तराखंड के लोक नृत्य (Folk Dances of Uttarakhand in Hindi) के बारे में यह सुन्दर आलेख जाह्नवी द्वारा लिखा गया है। जाह्नवी हेमवती नंदन बहुगुणा से पत्रकारिता में परास्नातक कर रही हैं।
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nice initiative bhaiji !!!