उत्तराखण्ड को शैव भूमी यानि शिव भूमि के नाम से तो जानते ही हैं मगर इस भूमि पर वैष्णव यानि विष्णु उपासकों की भी विशिष्ट पहचान है। यही वजह है कि विष्णु भक्तों के लिए उत्तराखण्ड की पुण्य भूमि पर आदिगुरू द्वारा पंच बदरी की स्थापना की गई है। पंच बदरी (Panch Badri) जिन्हें पंच बद्री के नाम से भी जानते हैं। भगवान विष्णु के परम धाम बदरीनाथ से इसका सीधा संबंध है। मान्यता है कि आदिकाल में बदरीनाथ से ज्यादा महत्व इन मंदिरों का रहा जो कलयुग आते-आते विष्णु की पूजा बदरीधाम में होने लगी। यही नहीं भविष्य में विष्णु की उपासना बदरीधाम में नहीं भविष्य बदरी में होगी। तो क्या है इन पंच बदरी (Panch Badri) मंदिरों और इनके महत्त्व की कहानी आइए जानते हैं।
पंच बदरी | Panch Badri
पंचबदरी, उत्तराखंड में स्थित हिन्दू धर्म में विष्णु के उपासकों के लिए महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल हैं। जो बद्रीनाथ धाम के अलावा आते हैं। इन पंच बदरी में भगवान विष्णु की अलग-अलग रूपों में मूर्ति स्थापित है। जो इन मन्दिरों की विशेषता को भी बताते हैं। ताज्जुब है कि इन पंच बदरी मन्दिरों की स्थापना विशेषकर चमोली जिले में हुई है। भगवान विष्णु के इन पंच बदरी मन्दिर (Panch Badri) के नाम हैं – बदरीनाथ, योगध्यान बद्री, भविष्य बद्री, वृद्ध बद्री और आदिबद्री।
इन मंदिरों का निर्माण आदिगुरू शंकराचार्य द्वारा किया गया था। वहीं इन मन्दिरों में कत्युरी शैली कला देखने को भी मिलती है। ज्ञात हो कि आदिकाल में शैव मत और वैष्णव मत के अनुयायियों का विशेष महत्व था। शैवमत में जहां भगवान शिव की पूजा अर्चना की जाती है वहीं वैष्णव मत के अनुयायियों द्वारा भगवान विष्णु की उपासना का महत्व है।
शंकराचार्य द्वारा जब भारत के चारों कोनों पर चार धामों की स्थापना की गई, तो उन्होंने न सिर्फ 12 ज्योतिर्लिंगों की स्थापना की बल्कि विष्णु के परम धामों की भी स्थापना की। ताकि भविष्य में इनके अनुयायियों द्वारा तीर्थाटन किया जा सके। शंकराचार्य की उत्तराखण्ड यात्रा के दौरान उत्तराखंड पर कत्यूरी शासन था। जिसके शासन को उत्तराखण्ड का स्वर्ण काल भी कहते हैं। उस दौरान कत्यूरी शासकों के विभिन्न भगवानों में अभिरूचि होने के कारण इन मंदिरों का निर्माण किया गया। मान्यता है कि इन 5 बदरी मन्दिरों के दर्शन करने के बाद मनुष्यों का कल्याण सुनिश्चित है। तो आइये जानते हैं इन पंच बदरी के बारे में।
बदरीनाथ | Badrinath
बदरीनाथ मंदिर उत्तराखंड के चमोली जिले में हिन्दू धर्म के सबसे पवित्र मंदिरों में से एक है। इस मन्दिर का निर्माण आठवीं शताब्दी में आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा किया गया था। इस मन्दिर का ढाँचा कई बार भूकंप की वजह से टूटा जिसका जीर्णोद्धार बारम्बार हुआ। यही वजह है कि बदरीनाथ मंदिर की वास्तुकला मुगल शैली से भी मेल खाती है।
बदरीनाथ मंदिर में हर साल भक्तों का जमावड़ा लगा रहता है इसे विष्णु के बैकुंठ धाम के रूप में भी जाना जाता है। नर और नारायण पर्वतों के बीच 3133 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस मंदिर के बारे में बताया जाता है कि विष्णु ने यहां नर और नारायण के अवतार में तपस्या की थी। बदरीनाथ मंदिर में भगवान विष्णु की 4 भुजा मूर्ति स्थापित है जो शालिग्राम शिला से बनी हुई है। बदरीनाथ मंदिर के बारे में संपूर्ण जानकारी के लिए इस लिंक को क्लिक करें।
योग-ध्यान बदरी | Yog-Dhyan Badri
उत्तराखंड के पाण्डुकेश्वर जोशीमठ से 24 किलोमीटर की दूरी पर स्थित योग ध्यान बद्री भगवान बद्रीनाथ मंदिर के ही समतुल्य पुराना बताया जाता है। योग ध्यान बदरी में भगवान विष्णु के इस मंदिर को कठुआ पत्थरों से कत्युरी शैली में बनाया गया है। यहाँ विष्णु की शालीग्राम शिला से निर्मित स्वयंभू मूर्ति की पूजा की जाती है।
योगदान योग ध्यान बदरी समुद्र तल से 1920 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। जो पंडुकेश्वर गोविन्द घाट के पास अलकनंदा नदी के किनारे मौजूद है। इन जगहों के बारे में मान्यता है कि यहां पाण्डवों का जन्म हुआ था वहीं पांडुओं के पिता पाण्डु ने यहां भगवान विष्णु की पूजा अर्चना की थी।
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार महाराज पाण्डु ने शिकार के दौरान अपने बाणों से जानवर समझकर एक ब्राह्मण की हत्या की थी। ब्राह्मण द्वारा पाण्डु को किसी भी स्त्री से सम्भोग करने पर उनकी मृत्यु का श्राप दिया गया। जिसके बाद महाराज पाण्डु ने यहां भगवान विष्णु की घोर तपस्या की थी। वहीं यहां द्रोपदी के पुत्रों का भी जन्म हुआ जिस कारण इस स्थान को पंडुकेश्वर के नाम से जाना जाता है।
भविष्य बद्री |Bhavishy Badri
भविष्य बद्री जोशीमठ के सुभाष गांव में 2744 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। ऐसा माना जाता है कि इस मन्दिर का निर्माण भी आदिगुरू शंकराचार्य द्वारा किया गया था। मन्दिर घने जंगलों के बीच स्थित है जहां भगवान विष्णु के अवतार नरसिंह की पूजा की जाती है। इस मंदिर के कपाट बद्रीनाथ मंदिर के कपाट के दौरान ही खोले जाते हैं वह बंद किये जाते हैं। वहीं यहां जन्माष्टमी के दिन मेला लगता है। इसके अलावा यहां हर 3 साल में भी मेला लगता है जिसे स्थानीय लोगों द्वारा जाख मेला कहा जाता है।
कहते हैं कि जब कलयुग का अंत शुरू होगा तब जोशीमठ में मौजूद इस भगवान नरसिंह की मूर्ति का हाथ गिर जाएगा और विष्णु प्रयाग के पास जय और विजय नाम के पहाड़ भी गिर जाएंगे। उस दौरान भगवान बदरीनाथ धाम का रास्ता काफी कठिन हो जाएगा जिस कारण भविष्य बद्री मैं फिर भगवान बद्रीनाथ की पूजा अर्चना की जाएगी।
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आदि बद्री |Adi Badri
उत्तराखंड के चमोली में कर्णप्रयाग से 17 किलोमीटर की दूरी पर भगवान विष्णु का आदिबद्री मन्दिर स्थित है। इस मंदिर में भगवान विष्णु की 1 मीटर ऊंची मूर्ति काले पत्थर से निर्मित है। यह मंदिर भगवान बद्रीनाथ मंदिर के समतुल्य ही पवित्र बताया जाता है। इस मन्दिर में 16 छोटे मंदिरों का समूह स्थित है। जहां भगवान विष्णु के अलावा माता लक्ष्मी, गणेश, श्री नर नारायण, राम आदि के भी दर्शन होते हैं। यह मन्दिर भी कत्युरी शैली में निर्मित है। इसके अलावा इस मन्दिर के पास आप परमार वंश की राजधानी रही चांदपुरगढ़ का किला भी स्थित है।
वृद्ध बद्री | Vridh Badri
पंच बदरी मंदिरों में भगवान विष्णु के वृद्ध रूप का भी जिक्र आता है। वृद्धि बद्री मंदिर बदरीनाथ धाम से 8 किलोमीटर दूर पूर्व दिशा में करीब 1380 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह मन्दिर वर्ष भर खुला रहता है। यहां नारद की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें एक बूढ़े इंसान के रूप में उन्हें नारद मुनि को दर्शन दिए थे।
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तो ये थी पंच बदरी (Panch Badri) के नाम से प्रसिद्ध मंदिरों के बारे में कुछ संक्षिप्त जानकारी। अगर आपके पोस्ट अच्छा लगा हो तो इसे शेयर करें साथ ही हमारे इंस्टाग्राम, फेसबुक पेज व यूट्यूब चैनल को भी सब्सक्राइब करें।
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