उत्तराखंड में उच्च हिमालय में पाई जाने वाली दुर्लभप्राय जड़ी बूटियों के कृषिकरण की अपार सम्भावनाओं को देखते हुए गढ़वाल विवि एवं डाबर इ.लि के बीच एमओयू हुआ हैं। विवि ने उच्च शिखरीय पादप कार्यिकी शोध केंद्र (हैप्रेक) को अनुभव के आधार पर डाबर इंंडियन लिमिटेड़ के साथ मिलकर उत्तराखण्ड में जड़ी बूटियों के कृषिकरण को बढ़ावा देने हेतु कार्य करने की जिम्मेदारी दी है।
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उत्तराखंड में विगत कई वर्षों से जड़ी बूटियों की खेती की जा रही है। जिसके सुखद परिणाम देख कर विवि ने डाबर इंंडियन लिमिटेड से बात कर इसको वृहद स्तर पर बढ़ाने की कार्य योजना बनाई है। वर्तमान समय को देखते हुए कई जड़ी बूटियाँ शरीर को निरोगी बनाने में काफी मददगार पाई गयी हैं, मगर ज्यादा मात्रा में सही उत्पाद न मिलने के कारण इनसे बनने वाली दवाईयों के उत्पादन में भारी कमी देखी जा रही है। जिससे डाबर, इमामी, हिमालया, पतंजलि, जैसी नामी गिरामी कम्पनियाँ जड़ी बूटियों के कृषिकरण को बढ़ावा देने हेतु आगे आ रही हैं।
गढ़वाल विवि एवं डाबर इ.लि. के बीच हुए समझौते में कुटकी, अतीस, जटामांसी, कुठ एवं तगर की खेती को बढ़ावा देने के लिए पिथौरागण, बागेश्वर, चमोली, टिहरी, पौड़ी एवं उत्तरकाशी को प्राथमिकता के आधार पर लिया गया है। हैप्रेक एवं डाबर द्वारा मिलकर इन प्रजातियों के ऊपर शोध कार्य भी किया जायेगा। साथ ही शोधार्थियों द्वारा समय समय पर डाबर इ.लि. की प्रयोगशाला का लाभ भी लिया जा सकेगा। समझौते के आधार पर डाबर इ.लि. विवि को वित्तीय सहयोग भी प्रदान करेगा। इस मौके पर गढ़वाल विवि की कुलपति प्रो. अन्नपूर्णा नौटियाल ने कहा कि यदि विश्वविद्यालय जड़ी बूटियों के कृषिकरण को बृहद स्तर पर पहुँचाने में सफल हो पाता है तो इससे एक ओर उत्तराखंड के किसानों की अतिरिक्त आय तो होगी ही साथ ही भविष्य के लिए जंगलों में भी विलुप्तप्राय बहुमूल्य जड़ी बूटियां संरक्षित रहेंगी।
डाबर इंंडियन लिमिटेड गाजियाबाद बायो रिसोर्स डेवलपमेंट ग्रुप के विभागाध्यक्ष डॉ० पंकज प्रसाद रतुड़ी ने कहा कि डाबर इ.लि. को जड़ी बूटियों की अधिक मांग रहती है, मगर ज्यादा मात्रा में सही उत्पाद न मिलने के कारण कम्पनी द्वारा अन्य देशों से भी जड़ी बूटियाँ मंगाई जाती हैंI यदि उत्तराखंड के किसान अधिक मात्रा में गुणवत्तायुक्त जड़ी बूटी उत्पादन करते हैं तो कम्पनी उस समय के बाजार भाव के आधार पर किसानों से जड़ी बूटी उत्पाद खरीदेगी।
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