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उत्तराखंड के बेरोजगार युवा न हों हताश, इन जड़ी बूटियों की खेती करेगी मालामाल ..

uttarakhand medical plant cultivation
FILE PHOTO - HRDI

हिमालयी क्षेत्रों में कई औषधीय जड़ी.बूटियां प्राकृतिक रूप से पाई जाती है जिनकी यदि खेती की जाये तो ये बेस कीमती जड़ी.बूटियां आर्थिकी का बड़ा जरिया बन सकती है। श्रीनगर गढ़वाल में स्थित हाई एल्टिट्यूड प्लान्ट फिजियोलाॅजी रिसर्च सेंटर के वैज्ञानिकों ने इस पर अध्ययन किया है जो एक तरफ  जड़ी.बूटियों की खेती को लोगों के लिए वरदान मान रहे हैं वहीं दूसरी तरफ प्राकृतिक रूप से उगने वाली जड़ी.बूटियों के अवैध दोहन पर चिंता जता रहे हैं।

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हिमालय प्राचीन काल से ही अनेक जड़ी बूटियों का भण्डार रहा है जिसका एक प्राचीन इतिहास हैए उतराखंड के अधिकाशं पर्वतीय क्षेत्र मध्य हिमालय क्षेत्र में बसे हैं जहां के वासिदों के लिए जड़ी.बूटी की खेती वरदान साबित हो सकती है। श्रीनगर गढ़वाल में स्थित हाई एल्टिट्यूड प्लान्ट फिजियोलाॅजी रिसर्च सेंटर के वैज्ञानिकाें ने प्रदेश में कई एसी जगह चिन्हित की है जहां जड़ी.बूटियाें की खेती करके लोग लाखों की आमदनी कर सकते हैं।



जानकारों की माने तो चमोली, रूद्रप्रयाग, पौड़ी, टिहरी, उतरकाशी,बागेश्वर, अल्मोड़ा और पिथोड़ागढ जिलों में कई ऐसे स्थल है जहां ऐसी बेसकीमती जड़ी.बूटियां उगाई जा सकती है। जिनकी खेती मैदानी इलाकों में किसी भी तरह सम्भव नही है। पिछले 15 सालों से चमोली के घेस और रूद्रप्रयाग के तुंगनाथ में रिसर्च सेन्टर बनाकर काम कर रहे डाॅ विजय कांत पुरोहित की माने तो जटमासी, कुटकी, सामला सालम पंजा, डोलू, सालममिश्री, लहसुनिया, शिल्पाहरी, हथजड़ी, पुष्करमोल, चोरु, कपूरकचरी, दौलू अरचा जैसी जड़ी.बूटियाें  की बाजार में बड़ी मांग है लेकिन स्थानीय लोग इन्हें केवल जंगलाें से दोहन करते हैं।
उतराखंड के हिमालयी क्षेत्र आज भी इस बात के तस्दीक करते हैं कि हिमालय औषधियों का खजाना है यही वजह है कि उत्तराखंड के चमोली जिले में रामायण काल की संजीवनी बूटी का द्रोणागिरी पर्वत आज भी मौजूद है। वहीं कई जनजातियां आज भी जड़ी.बूटी का व्यापार करती है। लेकिन प्राकृतिक रूप से उगने वाली जड़ी.बूटियाें का अनिन्त्रित दोहन कुछ वर्षों से खतरे का सबब बना हुआ है। जानकार मानते हैं कि यदि सरकारी स्तर पर जड़ी.बूटियाें की खेती में काश्तकारों की मदद की जाती है तो प्राकृतिक दोहन भी बच सकता है और लोगों को रोजगार भी उपलब्ध हो सकता है। वहीं वैज्ञानिकों के अध्ययन में इस बात की पुष्टि हुई है उतराखंड के उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में लोग जड़ी.बूटियाें का अनियन्त्रित दोहन करते हैं जिससे साल दर साल कई जड़ी.बूटियां विलुप्ति की कगार पर पहुंच चुकी है।
उतराखंड में पलायान का सबसे बड़ा कारण रोजगार की समस्या है वहीं जंगली जानवरों सुअर बन्दर से परेशान होकर लोग खेती से विमुख हो रहे हैं ऐसे में सरकारी प्रयास से औषधीय पादप की खेती लोगों के लिए आर्थिकी का जरिया बना सकती है वहीं पलायन जैसी समस्या पर भी अंकुश लगाया जा सकता है। जानकारी के लिए क्लिक करें।



यहां से लें जानकारी..

उत्तराखंड का जड़ी बूटी और विकास संस्थान चमोली के गोपेश्वर में स्थित है लेकिन इनकी खेती से जुड़ी जानकारी आसानी से संस्थान की वेबसाइट http://hrdiuk.org/ से ली जा सकती है. इसके अलावा 01372-254210 नंबर पर फ़ोन करके और director_hrdi@yahoo.indirector_hrdi@yahoo.in और hrdi_ut@rediffmail.com  पर ईमेल करके भी जानकारी ली जा सकती है.

संस्थान के वैज्ञानिक डॉक्टर विजय प्रसाद भट्ट कहते हैं कि उन्हें सीधे फ़ोन करने के कोई भी जड़ी-बूटियों की खेती या और भी कोई जानकारी ले सकता है. डॉक्टर भट्ट को 9412082003 और 7579201846 नंबरों पर फ़ोन किया जा सकता है

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