उत्तराखंड के प्रसिद्ध मेले – यूं तो उत्तराखंड में साल भर मेलों का आयोजन किया जाता है। पर उनमें से भी कुछ प्रसिद्ध मेले हैं जिनका इंतजार लोगों को बेसब्री से रहता है। ये मेले या तो भगवान के डोली के क्षेत्रीय भ्रमण पर होता है या फिर इनका कोई सांस्कृतिक या ऐतिहासिक महत्त्व होता है। इस पोस्ट के जरिए हम आपको उत्तराखंड के कुछ ऐसे ही प्रसिद्ध मेलों के बारे में बताने जा रहे हैं। पोस्ट को अंत तक जरूर पढियेगा। उत्तराखंड में मनाये जाने वाले प्रसिद्ध मेले।
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अषाड़ी कोथिक बग्वाल मेला
उत्तराखंड की प्रसिद्ध शक्ति पीठ माँ बाराहीधाम (देवीधूरा) जो कि चंपावत जिले में स्थित है। यह प्रतिवर्ष अगस्त माह में बग्वाल मेले का आयोजन होता है। इस मेले का मुख्य आकर्षण रक्षा बन्धन के दिन आयोजित बग्वाल है। जो कि एक प्रकार का पाषाड़ युद्ध है। इस अवसर में रिंगाल की छतरी को ढाल के रूप में प्रयोग किया जाता है जिससे की पत्थरों के वार से बचा जा सके। मान्यता है कि इस युद्ध में एक व्यक्ति के शरीर के रक्त के बराबर, रक्त बह जाने पर ही देवी माँ प्रसन्न हो जाती है।
बिस्सू मेला
जौनपुर क्षेत्र में बिस्सू मेले का आयोजन प्रति वर्ष अप्रैल माह में होता है। इस अवसर पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है। इस मेले का उद्देश्य अपनी लोक संस्कृति का संरक्षण करना है।
उत्तरायणी मेला
कुमाऊँ मंडल के बागेश्वर जिले में उत्तरायणी मेला जनवरी माह की मकर सक्रांति के दिन आरंभ होता है। इस मेले को स्थानीय रूप से *घुघुतिया ब्यार* कहा जाता है। इस स्थान पर दो पवित्र नदियों गोमती और सरयू नदी का संगम होने के कारण इस स्थान को स्नान योग्य तीर्थ माना गया है। इसी कारण बागेश्वर को उत्तर वाराणसी की संज्ञा दी गई है। इस मेले के अवसर पर श्रद्धालु भगवान बाघनाथ मंदिर में पूजा अर्चना करते है। इस मेले का मुख्य आकर्षण *चाँचरी नृत्य* है।
नागराजा सेम मुखेम मेला
यह मेला प्रतिवर्ष नवंबर माह में टिहरी जनपद में आयोजित होता है। इस मेले में स्थानीय लोग दूर-दूर से अपनी देवी-देवताओं के विग्रहों को नागराजा की जातरा में लाते है। मनभागी सेम मैदान में इस मेले का भव्य आयोजन होता है।
झंडा मेला
मान्यताएँ है कि 1699 ई. में श्री गुरुराम रॉय द्वारा अपना डेरा देहरादून में डाला गया था तब ही से होली त्यौहार के पांचवें दिन गुरुराम रॉय जी के जन्मोत्सव के अवसर में गुरुराम रॉय दरबार साहिब के झंडा मोहल्ला देहरादून में प्रतिवर्ष 15 दिन तक झंडे मेले का आयोजन होता है। इस मेले में उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश से भी श्रद्धालु आते है।
वैकुण्ड चतुर्दशी मेला
यह मेला संतान प्राप्ति के लिए कार्तिक मास की शुक्ल चतुर्दशी के अवसर पर श्रीनगर गढ़वाल में आयोजित होता है। इस मेले के अवसर में श्रीनगर में स्थित कमलेश्वर महादेव मंदिर में खड़े दीयों से पूजा की जाती है। निःसंतान दम्पति संतान प्राप्ति के लिए रात के समय में हाथ में दीया लिए खड़े रहते है। और प्रातःकाल अलकनंदा नदी में बहा दिया जाता है।
पूर्णागिरि मेला
चंपावत जनपद में टनकपुर के निकट पूर्णागिरि मंदिर में यह मेला प्रतिवर्ष होली पर्व के दूसरे दिन आयोजित होता है। यह मेला 1 से 2 माह तक चलता है। मान्यता है कि सती के अग्निकुण्ड में देह त्याग करने के बाद जब भगवान शिव उनके शव को लेकर आकाश में जा रहे थे तब यहाँ माता सती का नाभि अंग इस स्थान पर गिरा था। पूर्णागिरि तीर्थ को देवी की 108 सिद्धि पीठों मे गिना जाता है।
चैती मेला
उधम सिंह नगर जिले के काशीपुर नामक स्थान पर माँ बालासुन्दरी मंदिर में चैत्र माह में शुक्ल पक्ष में नवरात्रों के अवसर पर 1 माह तक चैती मेला आयोजित होता है। इस मेले में मुख्य रूप से प्राकृतिक, सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होते है। यह बोक्सा समुदाय का प्रमुख त्यौहार है। वह लोग इस मेले में बड़ी मात्रा में हिस्सा लेते है। इस मेले में सुखी दंपति जीवन के लिए देवी की छाप लगाने की परंपरा है।
जौलजीवी मेला
यह मेला पिथौरागढ़ जनपद में स्थित जौलजीवी नामक स्थान पर प्रतिवर्ष प्रांत के अवसर पर आयोजित होता है। जो कि एक सप्ताह तक चलता है। यह स्थान काली और गोरी नदी के संगम पर स्थित है। यह मेला व्यपारिक मेले के नाम से भी प्रसिद्ध है। मान्यताएँ है कि प्राचीन काल में जब आवागमन के साधन नही थे तो धारचुला जैसे क्षेत्र के निवासी भोटिया जनजाति के लोग परंपरा के अनुसार कुटीर उद्योग धंधों से निर्मित ऊनी कालीन व कपड़े इत्यादि बेचने के लिए यहाँ लाया करते थे।
तो ये थे उत्तराखंड के प्रसिद्ध मेले (Famous Festival of Uttarakhand) के जीवन से जुड़ी कुछ बातें । यदि पोस्ट अच्छा लगा हो तो इसे शेयर करें साथ ही हमारे इंस्टाग्राम, फेसबुक पेज व यूट्यूब चैनल को भी सब्सक्राइब करें।
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