माँ ज्वाल्पा देवी मंदिर (Jwalpa Devi Temple)उत्तराखंड के पौड़ी जनपद में स्तिथ है। नयार नदी किनारे स्तिथ ज्वाल्पा देवी मंदिर (Jwalpa Devi Temple)की शोभा देखते ही बनती है। माँ ज्वाल्पा देवी की सदैव अपने भक्तों पर विशेष अनुकंपा रहती है। इस पोस्ट में ज्वाल्पा देवी के इस मंदिर के उसी दिव्य स्वरूप के बारे में समस्त जानकारी आपको दी जाएगी। ज्वाल्पा देवी मंदिर (Jwalpa Devi Temple)।
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ज्वाल्पा देवी मंदिर | Jwalpa Devi Temple
उत्तराखण्ड को देवभूमि के नाम से जाना जाता है। यहां के कण-कण में देवी देवताओं का वास माना जाता है। उत्तराखंड के हर क्षेत्र में आपको कहीं न कहीं पर कोई न कोई देव या देवी का मंदिर अवश्य देखने को मिलेगा। जो अपने चमत्कारों के लिए खासा जाना जाता है । ठीक ऐसा ही एक मंदिर माँ ज्वाल्पा देवी का है। जो कि उत्तराखंड के पौडी गढ़वाल में स्थित है और यह मंदिर उत्तराखंड के साथ-साथ पूरे भारत में प्रसिद्ध है। कहते हैं की माँ ज्वाल्पा देवी के जो एक बार दर्शन कर ले फिर वो खाली हाथ नहीं लौटता।
ज्वाल्पा देवी मंदिर की स्थापना | Establishment of Jwalpa Devi Temple
ज्वाल्पा देवी मंदिर देवी के मुख्य शक्तिपीठों में से एक है। यह मंदिर पौड़ी – कोटद्वार सड़क मार्ग से 200 मीटर नीचे नयार नदी के किनारे स्थित है। इस मंदिर की शोभा देखते ही बनती है। इसकी स्थापना वर्ष 1892 में हुई थी । यह मंदिर माता पार्वती का मुख्य रूप “माँ दुर्गा” को समर्पित है। सदियों से इस मंदिर में माता ज्वाल्पा, एक ज्योत (दीप) के रूप में स्थित है जो दिन रात जलती रहती है । माता दुर्गा का यह मंदिर अपने सभी भक्तों की मनोकामना पूरी करने के लिए मुख्य रूप से जाना जाता है।
ज्वाल्पा मंदिर की पौराणिक कथा | Legend of Jwalpa Temple
केदारखन्ड एवं स्कन्द-पुराण के अनुसार सतयुग में एक दैत्य हुआ करता था जिसका नाम पुलोम था। दैत्य पुलोम की एक कन्या शची थी। शची मन ही मन मे देवताओं के राजा इन्द्र को पति के रुप में पाने की इच्छा रखने लगी,और इसी प्रबल इच्छा को पूरी करने के लिए वह हिवाल कन्या माता भगवती के पार्वती रूप की तपस्या वर्तमान स्थित ज्वाल्पा धाम मे करने लगी। शची की भक्ति से प्रसन्न होकर माता भगवती, पार्वती ने शची को दीप्त ज्वालेश्वरी (एक तीव्र ज्योति) के रूप में दर्शन दिया और साथ ही उन्हें इंद्रदेव की पत्नी होने के वरदान के साथ ये भी वर दिया की आज के बाद जो कोई भी इस धाम में सच्चे मन से वर कामना लेके आयेगा उसकी यह इच्छा जरूर पूरी होगी । तबसे “दैदीप्यमान ज्वालपा” स्वरुप ज्वाल्पा मंदिर में ज्योत सदैव प्रज्वलित की जाती है। इसी दिव्य महत्त्व के कारण ज्वाल्पा देवी मन्दिर नवविवाहितों के लिए खास माना जाता है और यहां अविवाहित कन्याएं सुयोग्य वर की कामना लेकर आते हैं। यह मन्दिर वर्तमान मे विवाह के लिए भी बहुत प्रसिद्ध है जहा आसपास के क्षेत्रों के लोग आकर माता के मन्दिर में विवाह करते हैं तथा माता ज्वालपा का आशीर्वाद पाते हैं ।
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ज्वाल्पा मंदिर से जुड़ी स्थानीय कथा | Local story related to Jwalpa temple
माता ज्वाल्पा देवी मंदिर (Jwalpa Devi Temple) की मूर्ति स्थापना के साथ एक स्थानीय कहानी भी जुडी हुयी है। इस कहानी के अनुसार पुराने समय में जो वर्तमान ज्वाल्पा स्थल है उस जगह का नाम अमकोटी था ,और इस स्थान को अमकोटी के रूप में जाना जाता था। अमकोटी निकटवर्ती इलाके मवालस्यू , कफोलस्यू, खातस्यू, रिगवाडस्यू, घुडदोडस्यू और गुराडस्यू आदि विभिन्न इलाकों के ग्रामीणों का विसोण (रुकने) का स्थान था। वे कही से भी आते-जाते इस स्थान पर बैठते थे। एक दिन कफोला बिष्ट नामक एक व्यक्ति नमक का कट्टा लेकर इस रास्ते आ रहा था । इस स्थान पर पहुंचते ही वह नमक का कट्टा नीचे रख कर काफी देर तक सो गया और जब वह उठा तो उसने अपना नमक का कट्टा (बोरी) उठाना चाह तो उसे वह बोरी भारी महसूस हुई, उसने कट्टा खोला तो पाया की कट्टे में माता की मूर्ति है। वह मूर्ति को वहीँ पर छोडकर चला गया। इस घटना के कुछ समय बाद निकटवर्ती इलाके के अणेथ गांव के दत्तराम के सपने में माता ने प्रकट होकर उस स्थान पर मन्दिर बनाऐ जाने की इच्छा जताई।
इसके आलावा मंदिर के भीतर स्थित अभिलेखों के अनुसार ये भी कहा जाता है कि जब आदि गुरु शंकराचार्य जी आदिकाल मे यहां आए थे तो माता ज्वाल्पा ने उनको दर्शन दिए । इसी कारण उन्होंने ही यहां पर माता के मंदिर की स्थापना की थी। वर्तमान में यह विष्ट और थपलियाल जाति के लोगों की कुलदेवी है जिसके पुजारी अणथ्वाल भाई सुरेश चन्द्र अणथ्वाल और कमलेश चन्द्र अणथ्वाल हैं। इस मंदिर में ज्वाल्पा माता के अलावा माता काली भगवान भैरवनाथ एव शिवलिंग तथा हनुमान जी हैं।
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ज्वाल्पा मंदिर में पूरी होती है हर मनोकामना | Every wish is fulfilled in Jwalpa temple
ज्वाल्पा देवी का यह मंदिर भक्तों के लिए साल भर खुला ही रहता है । सुबह 6 बजे से लेकर शाम 6 जे तक इसके कपाट खुले रहते हैं। सदियों से जलने वाली जो माता ज्वाल्पा की ज्योत है उसे दिन भर जले रहने देने की प्रथा यहां आज भी कायम है। जिसके लिए निकटवर्ती इलाकों एवं पट्टियों से सरसों इकट्ठा करके लाया जाता है। और कहा जाता है कि गढ़वाल के राजा प्रद्मूमन शाह ने 18वीं शताब्दी में इस मन्दिर में माता के अखण्ड दीप ज्वोति के तेल के लिए 11.82 एकड सिंचित भूमि दान की थी । ताकि माता के अखंड ज्योति के लिए इस भूमि में सरसों उगाया जा सके। माता ज्वालपा के इस मन्दिर में वैसे तो हर दिन भीड रहती है।लेकिन चैत्र एवं शारदीय नवरात्रों में यहां सैकड़ो की संख्या में भक्तों की भीड लगी रहती है और मान्यता अनुसार और दिनों की अपेक्षा इन दिनों माता अपनी भक्तों की विनती जल्दी सुन लेती है और जल्द ही इच्छा पूरा करती है।
कैसे पहुंचे ज्वाल्पा देवी मंदिर ?| How to reach Jwalpa Devi Temple?
पौड़ी से यह मन्दिर 33 किमी तथा कोटद्वार से 73 किमी है । कोटद्वार से आप सतपुली पाटीसैण होते हूए यहां पहुंच सकते हो। तथा श्रीनगर से आप पौडी परसुंडाखाल होते हुए इस मन्दिर में पहुंच सकते हो ।
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By Niku Negi
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