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बदरीनाथ मंदिर का इतिहास | Badrinath Temple History

बदरीनाथ मंदिर का इतिहास | Badrinath Temple History

बोल बद्री विशाल लाल की ………. जय!

ये उद्घोष आप लोगों ने भारतीय सेना की गढ़वाल राइफल्स के जवानों से जरूर सुना होगा। इस उद्घोष  के बाद गढ़वाल राइफल्स के जवान दुश्मनों पर मौत बनकर टूट पड़ते हैं। आखिर क्यों कहते हैं गढ़वाल राइफल्स के जवान बद्री विशाल की जय वह भी बताएंगे लेकिन उससे पहले आपको यह जानना जरूरी है कि आखिर कौन है बद्री विशाल और क्या कुछ मान्यता है इस बदरीनाथ धाम की।

 


बद्री विशाल यानी बदरीनाथ मंदिर | Badrinath Temple 

 

गंगोत्री पर्वत श्रृंखला पर चमोली में स्थित यह मंदिर भगवान विष्णु का प्राचीन मंदिर है। बदरीनाथ मंदिर व इसके आस-पास के क्षेत्र को बदरी धाम के नाम से भी जाना जाता है। बदरीनाथ मंदिर चार धामों में से एक है। हर साल बड़ी संख्या में यहां देश-विदेश से श्रद्धालु पहुंचते है। अप्रैल या मई माह में भगवान बद्री विशाल (बदरीनाथ) के कपाट खोले जाते हैं। वहीं नवंबर माह के अंत तक कपाट विधि विधान के साथ बंद कर दिये जाते हैं। इस बीच शीतकाल में बदरीनाथ मंदिर पूरी तरह बर्फ से ढक जाता है।

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बदरीनाथ मंदिर का स्वरूप

 

भगवान विष्णु के रूप नारायण का यह मंदिर मुगल शैली में बनाया गया है। मंदिर के अंदर भगवान नारायण बदरीनाथ की 3.3 फीट ऊंची प्रतिमा विराजमान है। माना जाता है कि यह प्रतिमा स्वयं यहां प्रकट हुई थी। वर्तमान में उत्तराखण्ड सरकार द्वारा गठित देवस्थानम बोर्ड बदरीनाथ मन्दिर, को प्रशासित करती है। वहीं यहां के पुजारी मुख्य रूप से केरल के रावल होते हैं।

बदरीनाथ मंदिर अलकनंदा नदी से लगभग 50 मीटर ऊंचे स्थान पर है। मंदिर में तीन संरचनाएं हैं, गर्भगृह, दर्शन मंडप, और सभा मंडप।  मंदिर के प्रांगण से चौड़ी सीढ़ियां मंदिर के मुख्य द्वार तक जाती है। जिसे सिंह द्वार कहा जाता है। यह एक लंबा धनुषाकार द्वार है। द्वार के सबसे ऊपर तीन सोने के कलश लगे हुए हैं। वहीं छत के बीच में एक विशाल घंटी लटकी हुई है।

मंदिर के अंदर प्रवेश करते ही बड़े-बड़े स्तम्भों से भरा एक हॉल है।  साथ ही यहाँ एक मंडप भी मौजूद है। जिसमें हवन किया जाता है। दूसरी ओर हाॅल का रास्ता गर्भगृह व मुख्य मंदिर  की ओर जाता है। हॉल की दीवारों और स्तंभों को जटिल नक्काशी के साथ सजाया गया है। गर्भगृह की छत शंकुधारी आकार की है, और लगभग 15 मीटर लंबी है। छत के शीर्ष पर एक छोटा कपोला भी है, जिस पर सोने का पानी चढ़ा हुआ है।

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बदरीनाथ मंदिर आरती को लेकर विवाद

 

बदरीनाथ में होने वाली आरती पवन मंद सुगंध शीतल को लेकर भी विवाद हुआ। बदरीनाथ मंदिर में सो सालों से गायी जा रही आरती को लेकर कई बार सवाल उठे हैं। कहा जाता था कि बदरूदीन ने भगवान बद्रीनाथ की आरती लिखी है। वहीं साल 2019 में राज्य सरकार ने ऐलान किया कि धान सिंह बर्थवाल द्वारा बद्रीनाथ की आरती लिखी गई थी।




क्या था मामला?

 

दरअसल, राज्य सरकार का कहना था कि स्थानीय लेखक धान सिंह बर्थवाल द्वारा बद्रीनाथ की पवन मंद सुगंध शीतल  आरती लिखी गई थी। दूसरी ओर सालों से यह मान्यता चली आ रही थी कि चमोली में नंदप्रयाग के एक पोस्ट मास्टर फखरुद्दीन सिद्दीकी ने 1860 के दशक में बदरीनाथ की आरती लिखी थी। जिस वजह से उनका नाम बदरूदीन रखा गया। लेकिन धान सिंह के परपोते महेंद्र सिंह बर्थवाल 2019 में प्रशासन के पास आरती की हस्तलिपि के साथ पहुंचे। कार्बन डेटिंग टेस्ट के बाद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने ऐलान किया कि यह हस्तलिपि 1881 की है, जब यह आरती चलन में आई थी। दूसरी ओर बदरुद्दीन का परिवार ऐसा कोई सबूत नहीं दे सका, इसलिए बर्थवाल परिवार के दावों को सच मान लिया गया।

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बद्रीनाथ मन्दिर की उत्पत्ति

 

बदरीनाथ मन्दिर की उत्पत्ति को लेकर कई मत प्रचलित हैं। कई मान्यताओं के अनुसार यह मन्दिर आठवीं शताब्दी तक बौद्ध मठ था, जिसे आदि गुरु शंकराचार्य ने एक हिंदू मंदिर में परिवर्तित कर दिया। इस तर्क के पीछे मंदिर की वास्तुकला एक प्रमुख कारण है, जो किसी बौद्ध विहार (मंदिर) के समान है। एक अन्य मान्यता यह भी है कि शंकराचार्य छः वर्षों तक इसी स्थान पर रहे थे। इस स्थान में अपने निवास के दौरान वह छह महीने के लिए बद्रीनाथ में, और फिर शेष वर्ष केदारनाथ में रहते थे। कुछ का कहना है कि मंदिर को नौवीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य द्वारा एक तीर्थ स्थल के रूप में स्थापित किया गया था। हिंदू अनुयायियों का कहना है कि बद्रीनाथ की मूर्ति देवताओं ने स्थापित की थी। जब बौद्धों का प्रभाव हुआ, तो उन्होंने इसे अलकनन्दा में फेंक दिया। शंकराचार्य ने ही अलकनंदा नदी में से बद्रीनाथ की इस मूर्ति की खोज की, और इसे तप्त कुंड नामक गर्म कुण्ड के पास स्थित एक गुफा में स्थापित किया।




बदरीनाथ के अन्य धार्मिक स्थल

 

  1. तप्त कुंड  यह अलकनंदा के तट पर स्थित एक अद्भुत गर्म झरना है।
  2. ब्रह्म कपाल यह समतल चबूतरा है।
  3. शेशनेत्र  यह शेशनाग की कथित छाप वाला एक शिलाखंड है।
  4. चरण पादुका यहां पर भगवान विष्णु के पैरों के निशान हैं।
  5. नीलकंठ पर्वत बर्फ से ढका हुआ है जो की बद्रीनाथ से दिखता है।

 

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कैसे पहुंचे बदरीनाथ

 

  • बदरीनाथ, आप सड़क मार्ग से पहुॅच सकते है।
  • इससे पहले आप ऋषिकश या देहरादून तक सड़क, हवाई या फिर रेलवे मार्ग के जरीये पहुॅच सकते हैं।
  •  इसके बाद ऋषिकेश से बदरीनाथ आपको सडक मार्ग से पहुॅचना होगा। ऋषिकेश से बद्रीनाथ की दूरी 274 किलोमीटर है।
  •  मन्दिर तक आवागमन सुलभ करने के लिए वर्तमान में चार धाम महामार्ग तथा चार धाम रेलवे जैसी कई योजनाओं पर कार्य चल रहा है।

 

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Kamal Pimoli

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