Trending
Fri. Oct 18th, 2024

kedarnath mandir ka itihas | केदारनाथ मंदिर का इतिहास और पुराणों में वर्णन

kedarnath mandir ka itihas

दोस्तों अगर आप केदारनाथ मंदिर का इतिहास  (kedarnath mandir ka itihas)और पुराणों में केदारनाथ का वर्णन जानना चाहते हैं और साथ ही केदारनाथ से जुडी पौराणिक मान्यताओं व् कथा की संक्षिप्त जानकारी चाहते हैं तो ये पोस्ट आपके लिए है।  पोस्ट पढ़ने से पहले ये बात जान ले की इस केदारनाथ मंदिर के इतिहास और पुराणों से इसके सम्बन्ध से जुडी सारी जानकारी हमने स्कन्द पुराण

Advertisement
, लिंग पुराण, वामन पुराण, पद्मम पुराण, कूर्म पुराण, गरुड़ पुराण, सौर पुराण, ब्रह्म वैवर्त पुराण, शिव पुराण, स्कन्द पुराण से पुराणों में केदारनाथ के वर्णन और मान्यताओं के आधार पर इक्क्ठा की है। ये जानकारी बहुत ही संक्षिप्त है। अब आप केदारनाथ मंदिर का इतिहास  (kedarnath mandir ka itihas)और पुराणों में केदारनाथ का वर्णन के बारे में पढ़िए। 


केदारनाथ |  Kedarnath

 

उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग में स्तिथ केदारनाथ मंदिर का इतिहास बताता है कि श्री केदारनाथ का मन्दिर पांडवों का बनाया हुआ प्राचीन मन्दिर है । जो द्वादश ज्योतिलिंगों में एक है । समस्त धार्मिक लोग सर्वप्रथम केदारेश्वर ज्योतिलिंग के दर्शन करने के पश्चात् ही बद्रीनाथ के दर्शन करने जाते हैं । श्री केदारनाथ मन्दिर बहुत ही भव्य और सुन्दर बना हुआ है । पौराणिक कथा के आधार पर केदार महिष ( भैसा ) रूप का पिछला भाग है । द्वितीय केदार मद्महेश्वर में नाभि , तुङ्गनाथ में बाहु और मुख रुद्रनाथ में तथा कल्पेश्वर में जटा है । यही पंचकेदार कहे जाते हैं ।

केदारनाथ मन्दिर के बाहरी प्रासाद में पार्वती , पांडव , लक्ष्मी आदि की मूर्तियाँ हैं । मन्दिर के समीप हँसकुण्ड है जहां पितरों की मुक्ति हेतु श्राद्ध – तर्पण आदि किया जाता है । मंदिर के पीछे अमृत कुण्ड है तथा कुछ दूर रेतस कुण्ड है । पुरी के दक्षिणभाग में छोटी पहाड़ो पर मुकुण्डा भैरव हैं जहां से हिमालय का मनोहर दृश्य अत्यन्त नजदीक दिखाई पड़ता है । पास ही में बर्फानी जल की झील है , वहीं से मंदाकिनी नदी का उद्गम होता है । केदारनाथ मंदिर के पास ही उद्दककुण्ड है जिसको महिमा विशेष बताई जाती है । केदारनाथ जी के मुख्य मन्दिर में पूजा करके पिण्ड का आलिंगन करते हैं ।


 

केदारनाथ मंदिर का इतिहास  | History of kedarnath mandir 

व्यास स्मृति ( चौथा अध्याय ) केदार तीर्थ करने से मनुष्य सब पापों से छूट जाता है।

 

प्राचीन पुराणों में क्या लिखा है ? | Mention of Kedarnath in Puranas

 

  • ( शान्ति पर्व ३५ वा अध्याय ) -महाप्रस्थान यात्रा अर्थात् केदारा चल पर गमन करके प्राण त्याग करने से मनुष्य शिवलोक को प्राप्त करता है ।
  • ( बन – पर्व ३८ वाँ अध्याय ) -केदार कुण्ड में स्नान करने से सब पाप नष्ट हो जाते हैं , कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन शिव के दर्शन करने से स्वर्ग मिलता है
  • लिंग पुराण– ( १२ वाँ अध्याय ) जो मनुष्य सन्यास लेकर केदार में निवास करता है वह शिव के समान हो जाता है ।
  • वामन पुराण– ( ३६ वां अध्याय ) केदार क्षेत्र में निवास करने से तथा डीडी नामक रुद्र का पूजन करने से मनुष्य अनायास हो स्वर्ग को जाता है ।
  • पद्म पुराण– ( पा ० खं ६१ वाँ अध्याय ) कुम्भ राशि के सूर्य तथा वृहस्पति हो जाने पर केदार का दर्शन तथा स्पर्श मोक्षदायक होता है ।
  • कूर्म पुराण– ( ३६ वां अध्याय ) हिमालय तीर्थ में स्नान करने से , केदार के दर्शन करने से रुद्र लोक मिलता है ।
  • गरुड़ पुराण– ( ८१ वाँ अध्याय ) केदार तीर्थ सम्पूर्ण पापों का नाश करने वाला है ।
  • सौर पुराण– ( ६ ९वां अध्याय ) केदार शंकर जी का महा तीर्थ है जो मनुष्य यहाँ स्नान करके शिवजी का दर्शन करता है , वह गणों का राजा होता है ।
  • ब्रह्म वैवर्त पुराण– ( कृष्ण जन्म खण्ड १७ वा अध्याय ) केदार नामक राजा सतयुग में सप्तद्वीप का राज्य करता था , वह वुद्ध होने पर अपने पुत्र को राज्य दे वन में जा तप करने लगा , जहाँ उसने तप किया वह स्थान केदार खण्ड प्रसिद्ध हुआ । राजा केदार की पुत्री वृन्दा ने जो कमला का अवतार थी अपना विवह नहीं किया , घर छोड़ कर तप करने लगी , उसने जहाँ तप किया वह स्थान वृन्दावन के नाम से प्रसिद्ध हो गया ।
  • शिव पुराण- ( ज्ञान संहिता ३८ वाँ अध्याय ) शिवजी के १२ ज्योतिलिंग विराजमान हैं , उनमें से केदारेश्वर लिंग हिमालय पर्वत पर स्थिति है । इसके दर्शन करने से महापापी भी पापों से छूट जाते हैं , जिसने केदारेश्वर लिंग के दर्शन नहीं किए उसका जन्म निरर्थक है ।
  • स्कन्द पुराण– ( केदार खण्ड प्रथम भाग ४० वाँ अध्याय ) युधिष्ठिर आदि पांडव गण ने गोत्र हत्या तथा गुरु हत्या के पाप से छूटने का उपाय श्री व्यास जी से पूछा । व्यास जी कहने लगे कि शास्त्र में इन पापों का प्रायश्चित नहीं है , बिना केदार खण्ड के जाए यह पाप नहीं छूट सकते , तुम लोग वहाँ जाओ । निवास करने से सव पाप नष्ट हो जाते हैं , तथा वहाँ मृत्यु होने से मनुष्य शिव रूप हो जाता है , यही महापथ है ।

 पौराणिक कथा में  केदारनाथ मंदिर का जिक्र | Mythology behind of Kedarnath temple

 

  • गंगा द्वार से चलकर बौद्धांचल तक पचास योजन लम्बा और तीस योजन चौड़ा स्वर्ग का मार्ग केदार मण्डल है , जिसमें निवास करने से मनुष्य शिव रूप हो जाता है । केदार मण्डल के अनेक तीर्थ हैं – सैकड़ों शिवलिंग , सुन्दर वन , नाना प्रकार की नदियां , तथा पुण्य पिंड विद्यमान हैं ।
  • केदारपुरी जाने की इच्छा करने वाला भी मनुष्य लोक में धन्य है , उसके ३०० पोढ़ियों तक के पितर शिवलोक में चले जाते हैं । केदार क्षेत्र सब क्षेत्रों में उत्तम है ।
  • केदार शिवजी की दक्षिण दिशा में रेतस कुण्ड है । इसका जल पीने से मनुष्य शिव रूप हो जाता है इसके उत्तर में स्फटिक लिंग है जिसके पूर्व सात पद पर वहीन तीर्थ में बर्फ के बीच में तप्त जल है इसी स्थान पर भीमसेन ने मुक्ताओं से श्री शंकर जी को पूजा की थी इससे आगे महापथ है , वहाँ जाने से मनुष्य ( आवागमन से छूट जाता है ।
  • मधु गंगा और मन्दाकिनी के संगम के पास क्रोंच तीर्थ है , क्षीर गंगा और मन्दाकिनी के संगम पर ब्रह्म तीर्थ है । उसके दक्षिण में वुदबुदाकर जल दीख पड़ता है । शिवजी के वाम भाग में इन्द्र पर्वत है । यहीं पर इन्द्र ने तप किया था । यहाँ एक शिवलिंग है । केदारनाथ से १० दण्ड पर हंसकुण्ड है जहाँ ब्रह्मा ने हंसरूप में रेतपान किया था । जो मनुष्य केदारनाथ के दर्शन कर रेतस कुण्ड का जल पीता है उसके हृदय में श्री शंकर जो स्थित हो जाते हैं । चाहे वह कितना ही पापी  क्यों न हो, किसी स्थान में किसी भी समय  मरे किन्तु शिवलोक में निवास करेगा ।
  • यहाँ श्राद्ध तथा तर्पण करने से पितर लोग परम पद को प्राप्त हो जाते हैं । केदारपुरी से भीम शिला तक महादेव जी की शैया है । इस केदार क्षेत्र में वर्षा काल में कमल और पुष्प होते हैं श्रावण मास में यात्री उन कमलों द्वारा ही शिवजी की पूजा करते हैं । केदारनाथ जी के पास भुवकुण्ड भैरव , चन्द्र शिला तथा चोराबाड़ी ताल है । केदारनाथ से कुछ दूर एक बड़ा भारी वासुको ताल है ।
  • ( शिव पुराण ) पाण्डव लोग अपना गोत्रवध का पाप छुड़ाने के लिए केदारेश्वर दर्शनार्थ केदार तीर्थ में गए । तब श्री शिव भैंसे का रूप धार वहाँ से भाग गये । पांडवों ने प्रार्थना की कि हे नाथ कृपा करके हम लोगों के पाप दूर करो और इस स्थान पर स्थित हो जाओ । तब प्रसन्न हो श्री शंकर जी अपने पिछले धड़ से वहाँ स्थित हुए ।

 

केदारनाथ की महिमा | Glory of kedarnath

 

केदारनाथ मंदिर का इतिहास (kedarnath mandir ka itihas) और पुराणों में केदारनाथ का वर्णन करते हुए कहा गया है कि केदारनाथ की भूमि में प्रविष्ट होते ही आनन्द और आश्चर्य की सीमा नहीं रहती । समुद्र की सतह से वारह तेरह हजार फुट की ऊँचाई पर इस मंजुल तीर्थ पर पहुंचते ही शीत , क्षुधा , पिपासा आदि कितने ही विघ्नों के होते हुए भी किसी भी धार्मिक व्यक्ति का मन भाव समाधि में लीन हो जाता है । धवल – धवल पर्वत पंक्तियों के बीच खड़ा मनुष्य ईश्वर की अखण्ड विभूति को देख – देख कर के ठगा – सा रह जाता है । प्रकृति के अनुपम सौन्दर्य को निहार कर इस रमणीय भूमि में स्वयं ही सत्व भाव उमड़ आता है । और जब मन में श्रद्धा की उष्णता उमड़ने लगे तो भला मन्दाकिनी का जल शीतल कैसे लगे ? शुद्ध तथा सात्विक श्रद्धा ही बड़े पुण्य का फल है । पापी लोगों के मन में श्रद्धा का उदय नहीं होता । मनुष्य संसार में जिस दिन जन्म लेता है उसी दिन से मृत्यु को अपने सिर पर लिए आता है किन्तु वह बड़ा होकर ये भूल जाता है । इस तरह से जिसके पास पापों का ढेर लग गया हो उसे पारलौकिक पुण्य क्रियाओं और आत्म शुद्धि की बुद्धि उत्पन्न नहीं होती । लेकिन जो व्यक्ति नगरों में रहते हुए गंगा के जल को छूते तक नहीं , देव मन्दिरों को झाँकते तक नहीं वह भी केदारनाथ की सत्व पृथ्वी पर आकर मंदाकिनी की अति शीतल जलधारा में बड़ी श्रद्धा से स्नान करके ‘ केदारनाथ की जय ‘ की पुण्य ध्वनि के साथ और ‘ हर – हर महादेव ‘ के जयघोष से मन्दिरों में प्रवेश करते हैं । अहो ! यहां कितनो विचित्र महिमा है भगवान शंकर की । वह सभी जीवों के प्रति समान प्रेम और स्नेह रखते हैं तभी तो यहाँ आकर प्रत्येक के मन में चित्त को पिघला देने वाला अनुराग पैदा जाता है । केदारनाथ मंदिर का इतिहास (kedarnath mandir ka itihas) और पुराणों में केदारनाथ का वर्णन बताता है कि ईश्वर के चरणों में अनु राग एवं शुद्ध भक्ति पैदा होने से ही मनुष्य जन्म कृतार्थ होता है।

इसे भी पढ़े – रुद्रप्रयाग का पौराणिक इतिहास


 

केदारनाथ मंदिर की वास्तुकला | Architecture of Kedarnath Temple

 

केदारपुरी उत्तर छोर पर श्री केदारनाथ जी का मन्दिर है , मन्दिर के ऊपर बीस द्वार की चट्टी है सबसे ऊपर सुनहरा कलश है । मन्दिर के ठीक मध्य में श्री केदारनाथ जो की स्वयंभू मूर्ति है, उसी में भसे के पिछले धड़ की भी आकृति है , यात्रीगण धी केदारनाथ का स्पर्श करते हैं , मन्दिर के आगे पत्थर का जग ( ६७ ) गोहन बना हुआ है , जगमोहन के चारों ओर द्रोपदो सहित पांचों पांडवों की मूर्तियाँ हैं इसके मध्य में पीतल का छोटा नन्दी और वाहर दक्षिण की ओर वड़ा नन्दो तथा छोटे बड़े कई प्रकार के घन्टे लगे हैं , द्वार के दोनों ओर दो द्वारपाल हैं , दस – पन्द्रह अन्य देव मूर्तियाँ हैं , श्री केदारनाथ जो की शृगार मूर्तियाँ पंचमुखी हैं ,यह हर समय वस्त्र तथा आभूषणों से सुसज्जित रहती हैं । मन्दिर के पीछे दो तीन हाथ लम्बा अमृत कुण्ड है जिसमें दो शिवलिंग स्थित हैं , पूर्वोत्तर भाग में हंसकुण्ड तथा रेतस हैं , रेतस कुण्ड में जंघा टेक कर तीन आचमन बायें हाथ से लिए जाते हैं , यहीं पर ईशानेश्वर महादेव हैं । पश्चिम में एक सुबलक कुण्ड है , केदार मन्दिर के सामने एक छोटे अन्य मन्दिर में लम्बा उदक कुण्ड है इसमें भी रेतस कुण्ड की तरह आचमन किया जाता है , इस मन्दिर के पीछे मीठे पानी का एक और कुण्ड है । इसका भो पानी पिया जाता है।


 

केदारनाथ मंदिर का इतिहास (kedarnath mandir ka itihas) और पुराणों में केदारनाथ का वर्णन के बारे जानकारी अच्छी लगी हो तो ये पोस्ट शेयर करेसाथ ही हमारे यूट्यूब चैनल को भी सब्सक्राइब करें।

By Deepak Bisht

नमस्कार दोस्तों | मेरा नाम दीपक बिष्ट है। मैं इस वेबसाइट का owner एवं founder हूँ। मेरी बड़ी और छोटी कहानियाँ Amozone पर उपलब्ध है। आप उन्हें पढ़ सकते हैं। WeGarhwali के इस वेबसाइट के माध्यम से हमारी कोशिश है कि हम आपको उत्तराखंड से जुडी हर छोटी बड़ी जानकारी से रूबरू कराएं। हमारी इस कोशिश में आप भी भागीदार बनिए और हमारी पोस्टों को अधिक से अधिक लोगों के साथ शेयर कीजिये। इसके अलावा यदि आप भी उत्तराखंड से जुडी कोई जानकारी युक्त लेख लिखकर हमारे माध्यम से साझा करना चाहते हैं तो आप हमारी ईमेल आईडी wegarhwal@gmail.com पर भेज सकते हैं। हमें बेहद खुशी होगी। जय भारत, जय उत्तराखंड।

Related Post

3 thoughts on “kedarnath mandir ka itihas | केदारनाथ मंदिर का इतिहास और पुराणों में वर्णन”

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You cannot copy content of this page